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________________ मन के लिए कितना समय १४१ जैसे शरीर का सु-पोषण एक ही पदार्थ से नहीं होता वैसे ही मन को भी अनेक सद्वृत्तियों का पोषण आवश्यक होता है। शरीर को विटामिन, खनिज, लवण आदि से युक्त पदार्थ चाहिए, वैसे ही मन के लिए भी, उसकी पुष्टि के लिए अनेक बातें चाहिए । दोहरी मूर्खता सारा सावध योग या अठारह प्रकार के पापों में प्रवृत्ति- यह सारा मन का कुपोषण है | मन भूखा तो नहीं है, भोजन मिल रहा है उसे, वह जी भी रहा है किन्तु दिमाग ठीक काम नहीं करता । शरीर के सारे अवयव ठीक काम नहीं कर रहे हैं, क्योंकि बेचारे मन को कुपोषण मिल रहा है । जब कुपोषण मिल रहा है तब वह अपने खेल दिखाएगा, सताएगा । आज न जाने कितने लोग मानसिक व्यथाओं से व्यथित हैं | इसका कारण है कि मुनष्य मन को कुपोषण दे रहा है । वह मानसिक पीड़ा से कैसे बच पाएगा ? यदि मानसिक व्यथाओं और तनावों से बचना है तो मन को सुपोषण देना होगा । यदि मन को संतुलित भोजन नहीं देते हैं तो फिर क्यों शिकायत करते हैं इतनी चिन्ताएं हो रही हैं, मन ठीक नहीं है ? कुछ लोग कहते हैं, मन खराब हो रहा है, नाच नचा रहा है, वासना सता रही है । पर वे यह नहीं सोचते- हम मन के लिए क्या कर रहे हैं ? उस पर दोषारोपण क्यों कर रहे हैं ? जब हम स्वयं मन को कुपोषण दे रहे हैं तब उसके सुनिश्चित परिणामों से क्यों घबराते हैं ? यह दोहरी मूर्खता है । कार्य का परिणाम भोगना ही होगा । भगवान ने कहा-बिइया मंदस्स बालया—यह मूर्ख की दोहरी मूर्खता है । एक मूर्खता तो पहले कर बैठा और अब उसे छुपाने की दोहरी मूर्खता कर रहा है । पोषण क्या है ? मन के सुपोषण की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है । उसे पोषण मिले, कुपोषण नहीं । जब-जब पापकारी प्रवृत्ति का विचार आए, उसे निकाल दें । प्रश्न है-मन का पोषण क्या है ? आयुर्वेद की भाषा में मन का पोषण है-सत्त्वगुण | जिस व्यक्ति में सत्त्वगुण की अधिकता होगी, उसका मन स्वस्थ रहेगा | रजोगुण और तमोगुण की अधिकता मन का कुपोषण है । जैन दर्शन के संदर्भ में मन का कुपोषण है-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या के भाव । तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के भाव मन का सुपोषण हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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