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मन के लिए कितना समय
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होगी । ये सारे काम हैं मन के । प्रश्न है— जब मन सुख-दुःख की अनुभूति में सहायक होता है, इन्द्रियों को प्रेरित करने में सहायक होता है, तब उसके पोषण आदि के विषय में इतनी उपेक्षा क्यों ?
पोषण, अपोषण और कुपोषण
खाद्यशास्त्र में तीन शब्द प्रचलित हैं — पोषण, अपोषण और कुपोषण । भोजन का नहीं मिलना, उसका अभाव होना, यह अपोषण की स्थिति है । प्राप्त होने वाला भोजन अपथ्य है, खराब है, यह कुपोषण की स्थिति है । सही भोजन की प्राप्ति पोषण है । मन के लिए भी ये तीनों बातें हो सकती हैं । लोग मन को पोषण देना नहीं जानते । वे उसे या तो पोषण देते ही नहीं या कुपोषण देते हैं, इसीलिए मन उनको क्रीड़ा कराता है । मन के खेल बड़े विचित्र होते हैं । यह सारा संसार मन की क्रीड़ा-स्थली है । मन का ही खेल है यह संसार । इसके खेलों के समक्ष विश्व के बड़े-से-बड़े खेल भी फीके हैं । मन कितने खेल दिखा रहा है । इसके खेलों में उलझा व्यक्ति एक-दूसरे को परास्त करना चाहता है ।
मन का खेल
पुराने जमाने की बात है । एक पंडित राजा के पास गया | वह विद्वान था, पर दरिद्र था । यह सच है— जहां ज्ञान होता है वहां धन नहीं होता और जहां धन होता है वहां ज्ञान नहीं होता । ज्ञानी धनी नहीं होता और धनी ज्ञानी नहीं होता । पंडित ने राजा की अभ्यर्थना की। राजा ने कहा -- 'पंडितजी ! मैंने सुना है कि तुम्हारे पूर्वज अगस्त्य मुनि ने एक चुल्लू में समुद्र का सारा पानी पीडाला था । तुम यदि तीन घड़े पानी पी जाओ तो मैं तुम्हें मनचाहा धन दूंगा ।' पंडित भी होशियार था । वह बोला- 'आपने ठीक कहा । मैंने भी सुना है कि आपके पूर्वज रामचन्द्रजी ने समुद्र पर पत्थर का सेतु बांध, उसे पार किया था । यदि आप समुद्र के पानी पर एक कंकर भी तिरा दें तो मैं तीन घड़े पानी पी लूंगा ।' राजा मौन हो गया ।
यह मन का खेल है। एक दूसरे को परास्त करना, नीचा दिखाना, अनुचित लाभ लेना — इन क्रियाओं से मन को पोषण नहीं मिलता, कुपोषण मिलता है । इससे मनुष्य के पैर लड़खड़ाने लगते हैं । यदि यह मान्यता होती कि जैसे
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