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________________ १२६ आमंत्रण आरोग्य को करता है, आसन आदि करता है, उसका शरीर बल बढ़ता है । जो श्रम नहीं करता, श्रम से जी चुराता है, वह शरीर बल को प्राप्त नहीं कर सकता । उसका शरीर - बल कम हो जाता है और श्रम के अभाव में वह अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है । योग से भी बल प्राप्त होता है । योग का अर्थ है— विभिन्न प्रकार के रसायनों का संयोग । आयुर्वेद में रसायन वह होता है जो बूढ़े को भी जवान बना दे, जीवन को आगे बढ़ाए। यह एक योग है, औषधि हैं । यह रसायन का प्रयोग है । रसायन आयुवर्धक स्वास्थ्यवर्धक और बलवर्धक होते हैं । आयुर्वेद में बल को बढ़ाने के लिए ये तीन उपाय बतलाए गए हैं— सम्यक् आहार, सम्यक् व्यायाम और सम्यक् योग 1 आहार और बल सम्यक् आहार से बल बढ़ता है और असम्यक् आहार से बल घटता है | आयुर्विज्ञान में माना गया है कि चीनी ताकत देती है, ऊर्जा देती है । यह शरीर का अनिवार्य तत्त्व है। चीनी जरूरी है, पर कौन-सी ? सफेद चीनी से सारे तत्त्व निकल जाते हैं, केवल एसिड पैदा करने वाला तत्त्व शेष रहता है । वह बलदायक नहीं होता । आजकल पोषणशास्त्र में दो बातों पर ध्यान दिया गया है— अम्लीय आहार और क्षारीय आहार | हमारे शरीर में यह अनुपात है कि १/२ अम्लीय आहार और २/३ क्षारीय आहार की जरूरत होती है । यदि व्यक्ति अधिक मात्रा में या बार-बार घी, मक्खन और मिठाइयां खाता है तो उसकी अम्लता, एसिडिटी बहुत बढ़ जाती है; क्षार और अम्लता का संतुलन गड़बड़ा जाता है । दो प्रकार के मनुष्य हैं— शाकाहारी और मांसाहारी । प्राकृतिक दृष्टि से शाकाहार प्राणी के शरीर के लिए अत्यन्त अनुकूल होता है । मांसाहार अम्लता बढ़ाता है, उत्तेजना पैदा करता है । जो मांसाहार करते हैं, वे शाकाहार भी करते हैं । वे फल और सब्जियां काफी मात्रा में खाते हैं। संभव है, मांस को पचाने के लिए उन्हें जरूरी माना जाता है । चेष्टा और योग सम्यक् व्यायाम या चेष्टा भी शरीर - बल के वर्धन के लिए उपयोगी होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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