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१२४ आमंत्रण आरोग्य को
प्रश्न है प्राणशक्ति का
.. प्रेक्षाध्यान पद्धति का महत्त्वपूर्ण अंग है-प्राणशक्ति का विकास । हम दीर्घश्वास का प्रयोग करते हैं । इसका एक प्रयोजन है मन को एकाग्र करना । इसका दूसरा प्रयोजन है-प्राणशक्ति का सम्यक् नियोजन करना, उसका विकास करना, उसको पुष्ट करना । प्राण को बाहर से पोषण मिलता है आहार के द्वारा, श्वास के द्वारा । दीर्घश्वास के साथ ऑक्सीजन अधिक मात्रा में भीतर जाता है । प्राणवायु ज्यादा होती है तो प्राण को सुपोषण मिलता है । यदि श्वास सम्यक् प्रकार से नहीं लिया जाता है तो प्राणशक्ति को ठीक पोषण नहीं मिलता। अधिकांश बीमारियां भी प्राणशक्ति की दुर्बलता के कारण होती हैं । जब वायटल एनर्जी (प्राणशक्ति) कम हो जाती है तब रोगों के आगमन की संभावना बढ़ जाती
यदि प्राण पर अधिकार हो जाता है तो सफलता के क्षेत्र में व्यक्ति आगे बढ़ जाता है । जिस व्यक्ति का प्राण पर अधिकार नहीं होता, वह जीवन में कोई बड़ा काम नहीं कर सकता । पहली बात है—प्राण पर अधिकार हो । आयुर्वेद में पांच प्राणों की चर्चा है, पर आज के आयुर्विज्ञान (मेडिकल साइन्स) में प्राणों की नहीं, केवल चार प्रकार के गैसों की चर्चा है । उसकी मान्यता के अनुसार शरीर के निर्माण में चार गैस और चौदह रसायनों का उपयोग होता है। ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन-ये चार प्रकार की गैसें हमारे शरीर में होती हैं । इनके द्वारा शरीर की शक्तियों का संचालन होता है ।
पहला है- ऑक्सीजन, प्राण | इसके द्वारा बल बनता है । बल के तीन प्रकार हैं-- मनोबल, वचनबल और कायबल | जैन साहित्य में दस प्राणों की चर्चा है । उनमें तीन को बल कहा गया है-मानेबल, वचनबल और कायबल । हम शरीर बल की भी उपेक्षा नहीं कर सकते और मनोबल को भी उपेक्षित नहीं कर सकते ।
बल : तीन प्रकार
प्रश्न है- शरीर का बल क्या है और मनोबल क्या है ? आयुर्वेद में शरीर-बल और मनोबल के तीन-तीन प्रकार प्रतिपादित हैं- सहज, कालकृत
और युक्तिकृत । शरीर बल तीन प्रकार के हैं- एक है सहजन्य | यह उत्पत्ति के साथ उत्पन्न होता है । दूसरा है कालजन्य | यह ऋत-विभाग से होने वाला
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