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________________ अहिंसा का विकास शत्रु की सेना कर्त्तव्य - विमूढ़ बन जाती है, वह कुछ भी नहीं कर सकती, निकम्मी हो जाती है । एक पक्षीय जो करना होगा, वह हो जाएगा । यह भी स्थिति आविष्कृत हो गई है कि किसी को रणक्षेत्र में जाने की जरूरत नहीं । प्रयोगशाला में बैठा-बैठा वैज्ञानिक सब कुछ घटित कर देता है । आज अतीन्द्रिय अस्त्रों की होड़ भी शुरू हो गई है। इसमें अमरीका, रूस आदि देशों ने काफी विकास कर लिया है । अन्तरिक्ष युद्ध की स्थिति भी बन गई है। इतना तीव्र और बहुआयामी प्रयत्न हो रहा है हिंसा के क्षेत्र में । अहिंसा के क्षेत्र में कोई प्रयत्न नहीं हो रहा है । अहिंसा को मानने वाले तो स्वयं लड़ रहे हैं । धर्म का क्षेत्र अहिंसा का क्षेत्र है पर उसे भी आज अहिंसा का क्षेत्र नहीं कहा जा सकता । उसमें आज इतनी साम्प्रदायिक कसाकसी, तनातनी है कि वह स्वयं युद्ध के अखाड़े जैसा बन गया है | आज अहिंसा स्वयं दयनीय स्थिति में है । फिर भी उसके लिए कोई प्रयत्न ही नहीं हो रहा है । उसके प्रति न आस्था है और न उसके विकास का प्रयत्न हो रहा है । अप्रयोगात्मक भूमिका अहिंसा के विकास का सातवां विघ्न है- अप्रयोगात्मक भूमिका । आज अहिंसा का कोई प्रयोग नहीं हो रहा है । प्रयोग हो तो किसी भी चीज का विकास हो सकता है । जब तक नया अनुसंधान नहीं होता, नयी खोज नहीं होती, उसका कोई प्रयोग और प्रशिक्षण नहीं होता तब तक किसी चीज का विकास नहीं हो सकता । ११३ अहिंसा के लिए न कोई अनुसाधान हो रहा है, न कोई नया प्रयोग हो रहा है और न कोई प्रशिक्षण दिया जा रहा है । हमने कहीं नहीं देखा कि सौ आदमी अहिंसा की ट्रेनिंग ले रहे हों अथवा पूरे हिन्दुस्तान में अहिंसा के प्रशिक्षण का कोई केन्द्र हो । प्रयोग और प्रशिक्षण के बिना, अनुसंधान या रिसर्च के बिना किसी भी चीज का विकास हो नहीं सकता । हमारे पास ज्यादा से ज्यादा है तो अहिंसा का सिद्धांत है या कुछ महापुरुषों के जीवन की घटनाएं और जीवनियां हैं । उनसे कभी-कभी थोड़ी प्रेरणा मिलती है, मस्तिष्क झंकृत होता है और मन में यह भाव जागता है कि अहिंसा अच्छी है या उन उन महापुरुषों ने इस प्रकार का अहिंसा का जीवन जिया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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