SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा का विकास १११ शरीर में जाने वाली धातुएं भी अपना परिणाम जताती हैं और हिंसा का निमित्त बनती हैं । यदि हमारे नाड़ीतन्त्र का दायां भाग अधिक सक्रिय होता है तो उद्दण्डता और उच्छृखला की वृत्ति पैदा होती है । इस प्रकार शारीरिक कारण भी अहिंसा के विकास में बाधा पहुंचा रहे हैं । अनास्था अहिंसा के विकास का पांचवां विघ्न है-अनास्था । हमारी अहिंसा में आस्था नहीं है । किसी भी व्यक्ति से पूछे, वह कहेगा, अहिंसा से कोई काम नहीं चल सकता । डंडे से ही काम चलेगा । यह मान लिया गया कि अणु अस्त्रों का विकास शक्ति-संतुलन के लिए, विश्व-शांति के लिए है । लोग खतरा महसूस करते हैं कि अणु अस्त्रों से विश्व का विनाश होगा किन्तु जिन राष्ट्रों के पास अणु अस्त्र हैं वे इसका समाधान देते हुए कहते हैं कि अणु अस्त्रों का अम्बार शक्ति-संतुलन के लिए है । अगर एक राष्ट्र के पास अणु अस्त्र है और दूसरे के पास नहीं है तो जिसके पास है, वह सारे संसार को नष्ट कर सकता है । किन्तु जब दो के पास होता है तो कोई यह साहस नहीं कर सकता कि एक-दूसरे पर आक्रमण करें । ऐसा पागलपन करने में उसे संकोच होगा । यह सारा शक्ति-संतुलन के लिए है । वास्तव में आदमी में अहिंसा के प्रति कोई आस्था नहीं है । उसकी आस्था है दंड के प्रति, शस्त्र के प्रति । यह अनास्था भी अहिंसा के विकास में बहुत बड़ा विघ्न है । आदमी ने कृत्रिम मान्यताएं बना लीं और उन्हीं के कारण वह अहिंसा की बात सोच ही नहीं सकता। उसका बहुत सारा जीवन कृत्रिम मान्यताओं के आधार पर ही चलता हैं । यथार्थता : कृत्रिमता यदि कभी हम एकांत के क्षणों में विचार करें तो हमें स्वयं पता चलेगा कि यथार्थ कितना है और कृत्रिमता कितनी है । बिना गहरे में उतरे इसका पता नहीं चल सकता, भ्रम बना रहता है। उस भ्रम का निरसन तभी हो सकता है जब सचाई सामने आए । एक व्यक्ति विदेश-यात्रा पर जा रहा था । अधिकारी ने कहा—तुम्हारा पासपोर्ट नकली है । उसने पूछा-कैसे ? अधिकारी बोला—पासपोर्ट में लगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy