________________
१०. वैचारिक जीवन और समन्वय
मनुष्य : एक विशिष्ट प्राणी
दुनिया में अनन्त-अनन्त प्राणी हैं। विश्व का एक-एक कण; आकाश का एक-एक प्रदेश जीवों से भरा हुआ है। इतने जीव हैं, जिनकी संख्या नहीं की जा सकती, जिन्हें नापा नहीं जा सकता। असंख्य नहीं, अनंत-अनंत जीव हैं इस संसार में। इन सब जीवों में मनुष्य एक प्राणी है। उसकी अपनी मौलिक विशेषताएं हैं। जो विशेषताएं मनुष्य में हैं, वे दूसरे प्राणियों में नहीं हैं। अन्तर्ग्रहीय या अन्तर्नक्षत्रीय किसी भी भूखण्ड में रहने वाले प्राणी में मनुष्य जितनी विशेषता नहीं है।
मनुष्य की अपनी तीन मौलिक विशेषताएं हैं-विचार, वचन और व्यवहार । विचार करने की क्षमता मनुष्य में है, वह किसी दूसरे प्राणी में नहीं है। वचन की जो शक्ति मनुष्य में है, वह किसी दूसरे प्राणी में नहीं है । व्यवहार की क्षमता भी जैसी मनुष्य में है, वैसी किसी दूसरे प्राणी में नहीं है। ये तीन ऐसे गुण हैं, ये तीन ऐसी विशेषताएं हैं, जो मनुष्य को शेष सारे जगत् के प्राणियों से विभक्त कर देती हैं। उसके अस्तित्व को विभक्त कर देती हैं, उसकी अलग पहचान बनाती हैं। विकास का कारण : वैचारिक क्षमता
चिन्तन मनुष्य की अपनी विशेषता है। मनुष्य जितना सोचता है, चिंतन करता है, वह एक विलक्षण बात है। अपने चिंतन के बल पर उसने बहुत विकास किया है। उसने अपने चिंतन से जगत् को बदल दिया। वैज्ञानिक सभ्यता के इस युग में आदमी कहां से कहां पहुंच गया है । विचार ने साहित्य को जन्म दिया, कला को जन्म दिया, सैकड़ों-सैकड़ों नई शाखाओं को जन्म दिया। सब कुछ विचार के कारण हुआ है। विचारशक्ति ने एक नई सृष्टि की और वह मनुष्य की मौलिक विशेषता बन गया। समृद्ध शब्दकोश
___ मनुष्य की दूसरी विशेषता है-वचन । पशु-पक्षी भी बोलते हैं किंतु उनकी कोई विशेष भाषा नहीं है। उनका शब्दकोश बहुत सीमित है। उनके शब्दकोश से एक पृष्ठ भी पूरा नहीं भर पाता। किसी की भाषा में छह शब्द हैं, किसी की भाषा में पांच शब्द हैं और किसी की भाषा में दस शब्द हैं। मनुष्य ने भाषा-कोश, शब्दकोश का इतना विस्तार किया कि लाखों-लाखों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org