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________________ अहिंसा के अछूते पहलु पहुंचाई है । यह मान लिया गया कि कुछ मनुष्य जन्मना ऊंचे होते हैं और कुछ मनुष्य जन्मना नीचे होते हैं । इस धारणा ने सह-अस्तित्व के सिद्धांत को चूरचूर कर दिया । एक गांव जो बसेगा, उसमें बड़े लोग तो गांव के मध्य में रहेंगे और हरिजन गांव के छोर पर रहेंगे। अन्त्य कुल में पैदा हुए हैं अतः अंत में ही रहेंगे, एक साथ नहीं रह सकते, एक साथ नहीं बस सकते। उन्हें साथ में रहने का अधिकार नहीं। इस जातिवाद ने उच्च माने जाने वाले लोगों में अहंकार को बढ़ावा दिया और निम्न माने जाने वाले लोगों में हीनभावना को जन्म दिया। जहा अहंकार और हीन-भावना होती है, वहां सहअस्तित्व नहीं हो सकता। जहां सह-अस्तित्व नहीं होता, वहां अहिंसा नहीं हो सकती। जहां सह-अस्तित्व नहीं होता, वहां अनेकान्त नहीं हो सकता। अनेकान्त का दर्शन है-प्रत्येक वस्तु को अनेक पहलुओं से जानो, देखो और समझो । हमने एकांगी दृष्टि से देखना शुरू कर दिया, जिससे अनेक समस्याएं. उलझ गईं। व्यक्ति-व्यक्ति में विभिन्नता क्यों ? उपयोगिता के लिए विद्या की अनेक शाखाएं बनीं । मनोविज्ञान, समाजविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि अनेक शाखाएं विकसित हुई और उनके निर्णय भी अनेक रहे हैं। एक समाजशास्त्री कहेगा- वर्तमान समस्या का मूल कारण यह समाजशास्त्र है । एक अर्थशास्त्री कहेगा-वर्तमान समस्या का मूल कारण आर्थिक विषमता है। अलग-अलग दृष्टिकोण है प्रत्येक विद्याशास्त्र का । यदि हम एक व्यवस्था के आधार पर निर्णय लेंगे तो हमारा निर्णय गलत होगा। व्यक्ति-व्यक्ति में विभिन्नता है लेकिन क्यों ? एक आनुवंशिकी वैज्ञानिक कहेगा-मनुष्य में जो यह अन्तर है, भेद है, उसका कारण है आनुवंशिकता। फिर एक चिन्तन आया कि मनुष्य-मनुष्य में जो अन्तर आया है, उसका कारण है-पर्यावरण, वातावरण । एक और सिद्धांत प्रस्तुत हुआ—मनुष्य-मनुष्य में जो अन्तर है, वह जीन के कारण है। किसी तर्कशास्त्री से पूछा जाए तो वह कहेगा—तर्क के कारण व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर आता है। ___अनेकान्त कहता है-किसी एक दृष्टिकोण से अर्थ मत निकालो। सही निर्णय करना हो तो सब को साथ में मिलाओ। आनुवंशिकता भी एक कारण बन सकता है, वातावरण भी एक कारण हो सकता है, जीन भी एक कारण हो सकता है, तर्क भी एक कारण हो सकता है। इन सब कारणों को मिलाया जाए और उससे जो निष्कर्ष निकलेगा, वह सही होगा। सही निर्णय के लिए. समग्र दृष्टिकोण का होना आवश्यक है। सब मनुष्य समान हैं। "सब जीव समान हैं और मनुष्य जाति एक है"-सह-अस्तित्व को व्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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