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________________ अहिंसा के अछूते पहलू बर्तन में से नहीं निकलेगा । भय का वातावरण बराबर बना रहेगा। पहल स्वयं से हो हमें आज यदि सचाई को समझना है और असचाई पर प्रहार करना है, असत्य पर प्रहार करना है तो सबसे पहले प्रयोगावस्था में जाना होगा। जब तक हमारा जीवन प्रायोगिक नहीं बनेगा तब तक कुछ भी संभव नहीं । प्रयोग कहां से शुरू करें ? सबसे पहले अपने आप से प्रयोग शुरू करें। अपने आप में सबसे पहला प्रयोग कायोत्सर्ग का करें। प्रेक्षाध्यान का सारा विकास कायोत्सर्ग के आधार पर हुआ है। चाहे चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा हो, चाहे शरीर प्रेक्षा और चाहे कोई भी प्रेक्षा हो, सबका आधार है कायोत्सर्ग । जब तक आदमी काया को छोड़ना नहीं जानता, काया की प्रवृत्ति को छोड़ना नहीं जानता, काया को स्थिर करना नहीं जानता, काया को शिथिल करना नहीं जानता, तब तक शारीरिक तनाव बना रहता है । जब तक यह शारीरिक तनाव बना रहता है तब तक अभय की और अहिंसा की बात नहीं सोची जा सकती। एक व्यक्ति प्रतिदिन बीस मिनट कायोत्सर्ग करता है और कायोत्सर्ग में पदार्थ से अपने अस्तित्व की भिन्नता का अनुभव करता है तो वह व्यक्ति निश्चित ही अभय और अहिसा में आगे बढ़ जाएगा। हम पहले अपने से शुरू करें और फिर दूसरा प्रयोग अपने परिवार में करें। हम अहिंसा की लंबी-चौड़ी बात न करें कि शत्रु ने आक्रमण शुरू कर दिया और अहिंसा होगी तो रक्षा कैसे संभव होगी ? ये सब उलझाने वाले तर्क हैं । सब अपना बचाव करेंगे । हम अहिंसा का प्रयोग अपने परिवार में करें। एक पड़ोसी बात नहीं मानता है तो उतना गुस्सा नहीं आता पर अपने बच्चे नहीं मानते हैं तो बड़ा गुस्सा आ जाता है। मेरा लडका मेरी बात नहीं मानता, पत्नी मेरी बात नहीं मानती। बड़ा गुस्सा आ जाता है। पड़ोसी नहीं मानता है तो सोच लेता है कि कोई बात नहीं, दूसरा आदमी है, माने या न माने । पर पुत्र के लिए और पत्नी के लिए कभी ऐसा नहीं सोचता। वहां तो इतनी हुकूमत जमाता है कि मेरी पत्नी और मेरा पुत्र मेरी बात नहीं मानता? पारा एकदम चढ़ जाता है । सबसे ज्यादा हिंसा का प्रसंग आता है अपने निकट के लोगों पर । वहां बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। हमने अनेक घटनाएं देखी हैं कि छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़को को घर से निकाल देते हैं। वे बच्चे हिंसक बन जाते हैं । अहिंसा का प्रयोग अपने परिवार के लोगों से प्रारंभ करें। भाई-भाई के बंटवारे में थोडा-सा इधर-उधर हो गया तो जीवन भर हिंसा का चक्र छूटता ही नहीं । १०-२० हजार के जमीन के छोटे से टुकड़े का अंतर आ गया तो जीवन भर बोलते ही नहीं। ऐसे भाइयों को देखा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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