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________________ ६. अहिंसक व्यक्तित्व का निर्माण ध्यान किस ओर __कुछ वर्षों पहले हम राजस्थान पुलिस एकेडमी के परिसर में तीन सप्ताह से अधिक समय तक रहे थे। एक शिविर था सामान्य और दूसरा शिविर था पुलिस के जवानों और अधिकारियों के बीच । हमने देखासूर्योदय होते-होते सैकड़ों-सैकड़ों पुलिस के जवान और ट्रेनिंग देने वाले अधिकारी खड़े हो जाते मैदान में और उनका घंटों प्रशिक्षण चलता। कुछ सशस्त्र पुलिस वाले और कुछ शस्त्र के बिना अभ्यास करने वाले। यह रोज का रिहर्सल, प्रतिदिन का पूर्वाभ्यास उनका निर्माण कर रहा था कि वे हिंसा से निपट सकें, हिंसक साधनों के द्वारा हिंसा को दबा सकें और हिंसा से हिंसा को निर्मूल कर सकें । हमने देखा है। सैनिक छावनियों में सैकड़ों सैनिकों की पंक्ति लगती है और उन्हें घंटों तक अभ्यास कराया जाता है। सारी पद्धति' सिखाई जाती है। हिंसा के लिए कितना प्रयत्न हो रहा है ! मनुष्य के मस्तिष्क को प्रशिक्षित किया जा रहा है कि कैसे शस्त्र का प्रयोग किया जाए? कैसे मारा जाए? कैसे हिंसा से हिंसा का सामना किया जाए? कैसे आक्रमण किया जाए ? कैसे प्रत्याक्रमण किया जाए ? इतनी सूक्ष्म जानकारी और इतनी ट्रेनिंग है कि वर्षों तक चलती रहती है और उसकी पुनरावृत्तियां कई वर्षों तक होती रहती हैं। कभी उसे पुराना नहीं होने दिया जाता, बासी नहीं होने दिया जाता । इतना नया-नया विकास हो रहा है। नए प्रक्षेपास्त्र आ गए। नए टेंक, नए आग्नेयअस्त्र, नए वाहन आ गए। यदि एक वर्ष पिछड़ जाए, पुराना पड़ जाए, बासी हो जाए, तो वह किसी काम का नहीं रहता। उसे तात्कालिक रहना पड़ता है। आज की नवीनतम तकनीक का ज्ञाता होकर रहना पड़ता है। एक विरोधाभास हमने सुना है-कुछ पश्चिमी देशों में आतंकवाद का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। मन में एक विकल्प उठता है कि हिंसा के लिए व्यक्ति को इतना ट्रेंड किया जा रहा है, प्रशिक्षित किया जा रहा है तो क्या अहिंसा के लिए ट्रेनिंग की कोई आवश्यकता ही नहीं है ? ऐसा लगता है नहीं है । अहिंसा को हमने बिलकुल परित्यक्ता बना दिया है। हम बात करते हैं अहिंसा की और समाज में मारी तैयारी है हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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