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________________ प्रस्तुति मानवीय सभ्यता और संस्कृति का उच्चतम विकास बिन्दु हैअहिंसा । हिंसा जीवन यात्रा के साथ जुड़ी हुई है पर वह जीवन के विकास का अंग नहीं है। मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है, इसलिए वह हर क्षेत्र में विकास की यात्रा करता है । सामाजिक स्तर पर भी अहिंसा एक विकास है। अध्यात्म के स्तर पर वह सर्वोच्च विकास है। समाज की आचार-संहिता अहिंसा के बिना पल्लवित नहीं हो सकती। अध्यात्म की आचार-संहिता उसके बिना बन ही नहीं सकती। अध्यात्म का पहला बिन्दु अहिंसा है और चरम बिन्दु भी अहिंसा अहिंसा का मूल्यांकन हुआ, प्रवचन भी हुआ। उसका आचरण कम हुआ है। अंतरंग परिष्कार के बिना उसका आचरण सम्भव नहीं बनता। हिंसा के लिए शरीर, मन और वाणी-तीनों की अपनी-अपनी प्रक्रिया है। अहिंसा के लिए भी इन तीनों की प्रक्रिया होती है। बहुत लोग मन को ही हिंसा का हेतु मानते हैं । यह एकांगी मनन है । हिंसा के लिए शरीर के अवयव भी उतने ही उत्तरदायी हैं जितना मन । प्रस्तुत पुस्तक में हिंसा में योग देने वाले शारीरिक अवयवों, जैव रासायनिक प्रक्रियाओं और नाड़ीतंत्रीय गतिविधियों का भी विमर्श किया गया है। अहिंसा का चिंतन करते समय इन पहलुओं पर ध्यान देना इस वैज्ञानिक युग में अनिवार्य है। अहिंसा और शांति- इन दोनों को विभक्त नहीं किया जा सकता। अहिंसा शान्ति है और शान्ति अहिंसा है। दोनों में तादात्म्य संबंध है । प्रस्तुत ग्रन्थ में अहिंसा के शान्त्यात्मक पक्ष का भी स्पर्श किया गया है। आज का आदमी विश्वशांति की बात बहुत सोचता है पर इस सचाई को विस्मृत कर देता है कि मानसिक शांति के बिना विश्वशांति की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि हम मानसिक अशांति की समस्या का समाधान खोज लें तो वैश्विक अशांति की समस्या स्वतः सुलझ जाए। समस्या दो प्रकार की होती है-भौतिक और मानसिक । भौतिक समस्या का समाधान पदार्थ की संतुलित व्यवस्था के द्वारा ही हो सकता है । मानसिक समस्या का समाधान चेतना के स्तर पर ही सम्भव है। भौतिक समस्या का समाधान अध्यात्म में खोजना और मानसिक समस्या का समाधान पदार्थ में खोजना मानवीय चितन की सबसे बड़ी भूल है और इस भूल को हम दोहराते चले जा रहे हैं। इसीलिए समस्या का सही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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