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अहिंसा और आहार भोजन सम्बन्धी अनेक वर्जनाएं की गईं। तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए, मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना चाहिए, प्याज-लहसुन आदि का वर्जन करना चाहिए। मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, आदि-आदि । योद्धाओं और हिंसकों के लिए मांस-मदिरा की छूट थी, क्योंकि क्रूर हुए बिना दूसरों का कत्लेआम नहीं किया जा सकता। योद्धा को क्रूर होना होता है तभी वह अपने शत्रुओं को घास की भांति काट सकता है । उनके लिए तामसिक आहार की उपयोगिता बताई। सात्विक आहार करने वाले के मन में करुणा जाग जाती है । वह दूसरे को मार नहीं सकता।
मांस-मदिरा का प्रयोग सीमित दायरे में था, पर आज यह समाजव्यापी बन गया। सभी क्षत्रिय और योद्धा बन गए। यह सभी में चल पड़ा, इसलिए बहुत हानि हुई है। अहिंसा का महत्त्वपूर्ण सूत्र
अहिंसा के प्रश्न पर यह विचार केवल धर्म की दृष्टि से नहीं, किन्तु शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से कर रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि किस प्रकार के भोजन से शरीर में क्या-क्या रसायन बनते हैं, एसिड बनते हैं ? कौनकौन से विष किस-किस प्रकार की वृत्ति पैदा करते हैं ? आदमी थोड़ा-सा श्रम करता और थक जाता है। यह थकान श्रम करने से नहीं आती, परन्तु शरीर में संचित जहरीले द्रव्यों के कारण आती है। जब यूरिक एसिड का जमाव अधिक होता है, आदमी थोड़े से श्रम में भी थककर चूर हो जाता है। शरीर की रक्त-प्रणलियों में एसिड जम जाता है और वह रक्त के संचार में अवरोध दा करता है। इन विष-द्रव्यों को शरीर में जमा न होने देनायह है अहिंसा और आहार का एक महत्वपूर्ण सूत्र । हिंसा पर अंकुश का मार्ग
___ शरीर में विष-द्रव्य बनेंगे, उन्हें रोका नहीं जा सकता। शरीर है तो भोजन करना ही होगा। भोजन में दोनों प्रकार के द्रव्य होते है-अम्लांत और क्षारांत । एक अम्ल होता है और एक क्षार होता है। आज अम्लांत भोजन अधिक है और क्षारान्त कम । अम्लता से विष-द्रव्य बढ़ते हैं। उन्हें रोका नहीं जा सकता किन्तु वे संचित न हो, यह सावधानी बरती जाए तो अहिंसा के लिए रास्ता साफ हो जाता है और हिंसा की प्रवृत्तियों पर अंकुश लग जाता है।
प्रश्न है -विष-द्रव्यों का निष्कासन कैसे किया जाए ? इस प्रश्न के उत्तर में, सबसे पहले यह सावधानी बरतनी होगी कि विष-द्रव्य कैसे कम हों, अधिक मात्रा में न बढ़ें। दूसरी बात यह हो कि जो विष-द्रव्य जमा हो जाते हैं, उनको कैसे निकालें।
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