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________________ २४. अहिंसा के अछूते पहलु पोजिटिव । सामान्यतया यदि सर्वे किया जाए तो व्यक्ति में निषेधात्मक दृष्टिकोण अधिक मात्रा में मिलता है, विधायक दृष्टिकोण कम मात्रा में मिलता है। निषेधात्मक दृष्टिकोण आदमी को हिंसा की तरफ ले जाता है। घृणा, ईर्ष्या, भय, कामवासना-ये सब निषेधात्मक दृष्टिकोण हैं। घृणा के कारण आज कितनी हिंसा हो रही है ? जितनी जातीय हिंसा है, जितनी. रंगगत हिंसा है और जितनी सवर्ण और असवर्ण की हिंसा है, ये सारी हिंसाएं घृणा के आधार पर चल रही हैं । घृणा का एक ऐसा तत्त्व आदमी के भीतर. बैठा है कि वह दूसरे से घृणा करता है, दूसरे को छोटा मानता है और अपनेआपको बड़ा मानता है। आज विश्व के सामने भयंकर समस्या है जाति की समस्या और रंग की समस्या । हिन्दुस्तान में प्रबल समस्या है जाति की समस्या तो अमेरिका जैसे विकसित देशों में है रंग की समस्या, गोरे और निग्रो की समस्या ! अफ्रीकी लोगों की भी यही समस्या है। ये सारी समस्याएं अथवा साम्प्रदायिक समस्याएं घृणा के आधार पर पनपती हैं । यदि घृणा न हो तो सांप्रदायिक समस्या पनप ही नहीं सकती। हम तो सबसे ऊंचे हैं, बाकी सब नीचे हैं ऐसी घृणा भर दी जाती है। छोटे-छोटे किशोर जो कुछ भी नहीं जानते, वे भी घृणा के आधार पर हजारों को कत्ल कर देते हैं, मार देते हैं। यह सब निषेधात्मक दृष्टिकोण है। ईर्ष्या के कारण कितनी हिंसा होती है। दो व्यक्ति देवी की साधना करते थे। देवी प्रसन्न हो गई और बोली-वरदान मांगों। देवी ने सोचा-परीक्षा तो करूं कि इनका भाग्य कैसा है। उसने कहा, जो पहले मांगेगा उसे आधा दूंगी और जो बाद में मांगेगा उसे दूना दूंगी। अब बड़ी समस्या खड़ी हो गई । उनमें एक था लोभी। लोभ भी एक निषेधात्मक दृष्टिकोण है। उसने सोचा, यदि मैं पहले मांगंगा तो ठगा जाऊगा । दूसरा था ईर्ष्याल । दोनों में ठन गई। क्या करे ? देवी ने कहा, इतना समय मैंने दे दिया अब मैं जा रही हूं, मांगना हो तो मांगो। लोभी तो टस से मस नहीं हुआ और ईर्ष्यालु सोचता है कि यह मेरे से भिडा है, अब इसे मजा चखाऊंगा। निषेधात्मक दृष्टिकोण जाग गया। वह बोला, माता ! कृपा कर मेरी एक आंख फोड़ दो। अपनी एक आंख फूड़ा ली। उसे क्या मिला ? दूसरा बेचारा अन्धा हो गया। यह हिंसा क्यों हुई ? इसका क्या कारण है ? कोई कारण नहीं, केवल निषेधात्मक दृष्टिकोण है। ऐसी हिंसा समाज में और परिवारों में कितनी चलती है ? दो भाइयों को हमने देखा। एक भाई कहता है कि मैं चाहे बरबाद हो जाऊं पर इस भाई को तो बरबाद करके ही रहूंगा। क्या भला होगा तुम्हारा ? तुम्हें क्या मिलेगा ? स्वयं बरबाद होने को तैयार है, पर उसे बरबाद करके ही रहूंगा। ये सारी हिंसाएं, निषेधात्मक दृष्टिकोण के कारण चल रही हैं । आदमी का विधायक दृष्टिकोण नहीं है । वह विधायक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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