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________________ २० अहिंसा के अछूते पहलु ari भी अहंकार को थोड़ी चोट पहुंचती है, युद्ध की स्थिति बन जाती है । लड़ाई अहं की गुजरात का एक प्रदेश है गिरनार । गिरनार राज्य पर बादशाह अपना आधिपत्य जमाना चाहता था । अनेक प्रयत्न किए और आक्रमण किए, पर सफल नहीं हो सका। वहां के शासक राव थे। उनके एक भाई का नाम था जैसाकी । वह इतना पराक्रमी था कि बादशाह की सेना उसके सामने टिक नहीं पाती थी । अनेक प्रयत्न किए पर सफल नहीं हो सका । गिरनार का एक चारण बादशाह के वहां सेवा में जाता था और राव के वहां भी सेवा में जाता था । जब-जब वह चारण वहां आता, राव उसे सम्मानित करता और “शिरोपाव" देता, पगड़ी भी देता, सम्मान करता । एक बार चारण आया तो राव ने उसे शिरोपाव तो दिया पर पगड़ी नहीं दी । चारण बोला, करुणासिन्धु ! मैं जब-जब भी आता हूं आप मुझे पगड़ी भी देते हैं । इस बार नहीं दी । इसका कारण क्या है ? राव ने कहा- तुम वहां जाओगे और बादशाह के सामने झुकोगे । मेरी पगड़ी बादशाह के सामने झुक नहीं सकती । अत: मैं पगड़ी नहीं दे सकता । चारण ने कहा, मैं यह संकल्प करता हूं कि आप द्वारा दी गई पगड़ी झुकेगी नहीं । राव ने पगड़ी दे दी । उसने बांध ली । वह बादशाह के पास गया और जैसे ही बादशाह के सामने झुकने का प्रसंग आया तो उसने पगड़ी को उतारकर हाथ में लिया । बादशाह ने देखा । उसे बड़ा गुस्सा आया । उसने कहा, ऐसा क्यों ? पगड़ी को हाथ में ले लिया और फिर सिर झुकाते हो ? चारण ने कहा, यह पगड़ी झुक नहीं सकती । यह "जेसाकी" द्वारा दी गई पगड़ी है । उन्होंने पगड़ी देते समय मुझे कहा है कि मेरी पगड़ी बादशाह के सामने झुक नहीं सकती। मैंने भी इस पगड़ी को बादशाह के सामने नहीं झुकाऊंगा । अतः यह पगड़ी नहीं झुक सकती, मेरा सिर झुक सकता है । संकल्प लिया है कि मैंने ऐसा किया है । इस छोटी-सी बात से बादशाह के अहं पर इतनी गहरी चोट हुई कि उसने तत्काल अपनी विशाल सेना लेकर गिरनार पर आक्रमण कर डाला । एक भयंकर युद्ध शुरू हो गया । कितनी छोटी बात पर हिंसा भड़क उठती है ? कितनी छोटी बात पर युद्ध शुरू हो जाता है ? कुछ भी लेना-देना नहीं था, पर अहं पर थोड़ी सी चोट हुई और एक युद्ध प्रारम्भ हो गया । क्रोध का आवेश, अहंकार का आवेश, लोभ का आवेश - आवेश आदमी को हिंसा की ओर ले जाते हैं । ये हिंसा के सबसे बड़े सहायक और पोषक तत्त्व हैं । अवसादजन्य तनाव और हिंसा अवसादजन्य तनाव भी हिंसा में ले जाते हैं । आदमी प्रयत्न करता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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