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________________ अहिंसा के अछूते पहलु करना है-इस ओर उसका ध्यान नहीं है। दो प्रकार के कार्य होते हैं-मुख्य और गौण । आज की समस्या है-विद्यार्थी पढ़ता है कालेज में, विश्वविद्यालय में । उसका ध्यान पढ़ने में उतना नहीं है जितना अच्छी नौकरी को प्राप्त करने में है । माता-पिता भी यही सोचते हैं कि उनका पुत्र अच्छी सर्विस में चला जाए। आजीविका कैसी मिले यह गौण बात मुख्य हो गई। अध्ययन में गहराई आए--यह मुख्य बात गौण हो गई । मानसिक बीमारी का लक्षण है—मुख्य कार्य में संतोष का न होना और प्रासंगिक कार्य में संतोष मानना। जीवन की विसंगति धर्म निर्जरा के लिए है, आचार निर्जरा के लिए है। यदि निर्जरा की बात गौण हो जाए, प्रदर्शन की बात मुख्य हो जाए तो धर्म एक विडंबना बन जाता है । जो गौण था प्रदर्शन, वह मुख्य बन गया । मुख्य थी निर्जरा, वह गौण हो गई। यह एक जीवन की विसंगति है जो मानसिक बीमारी को पनपने का अवसर देती है। हमें इस सचाई का अनुभव करना है कि हमारा ध्यान मुख्य कार्य में ही लगे । उसी से हम संतुष्ट हों । गौण बात का प्राप्त होना दूसरे नंबर पर है। वह प्रासंगिक फल है। समाधान का आयाम | प्रश्न होता है-यह संभव कैसे बने ? मानसिक स्वास्थ्य का विकास कैसे किया जाए ? मानसिक बीमारी से कैसे बचा जाए ? हिंसा, अपराध, शस्त्रीकरण, मारकाट, आतंकवाद आदि-आदि समस्याओं के समाधान के लिए अनेक विधियां विकसित हो रही हैं। क्या वे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के बिना सार्थक बन पाएंगी ? इस प्रश्न के समाधान के कुछ आयाम बन सकते हैं। इनमें सबसे पहला है-शिक्षण । शिक्षण की व्यवस्था सम्यक् हो। यह प्रेक्षाध्यान शिविर शिक्षण की एक सम्यक् व्यवस्था ही है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति को जानने और समझने का मौका मिलता है कि शिक्षण के द्वारा आत्मविश्वास को पैदा किया जा सकता है । आत्म-विश्वास की कमी के कारण मानसिक बीमारी पनपती है, मनोबल का ह्रास होता है। हर कोई कहता है-मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं यह नहीं कर सकता। इसका अर्थ है-वह अपना आत्म-विश्वास खो चुका है। शिक्षण के द्वारा यह आत्म-विश्वास पैदा किया जा सकता है कि तुम ऐसा कर सकते हो। मैं महावीर बन सकता हूं : मैं मानता हूं—महावीर की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उन्होंने किसी दूसरे पर भरोसा नहीं किया। जो ईश्वर पर भरोसा करते हैं, वे अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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