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________________ १. हमारी जीवन-शैली और अहिंसा अनुत्तरित प्रश्न एक प्रश्न पैदा हुआ कि मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हआ ? उसके पुरखे आपस में मिलजुल कर रहना सीख गए थे। प्राइमेट कुल के नर-वानर आपस में मिलजुल कर रहते थे। उनसे पहले स्तनधारी प्राणी आपस में मिलजुलकर रहना सीख चुके थे । जब आपस में सब मिलकर रहते थे तो फिर मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ ? यह एक प्रश्न है और है अनुत्तरित प्रश्न । इस पर काफी खोज हुई है, पर इसका समाधान हुआ हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मनुष्य भी सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जीता है और मिलजुलकर रहता है। सामाजिक जीवन का अर्थ है संबंध का जीवन । अनेक संबंध स्थापित हुए हैं। संबंधों के अनेक आधार हैं। मनुष्य में काम है, इसलिए उसने परिवार बनाया है। उसने अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए परिवार का गठन किया है, संबंध स्थापित किया है। उसमें स्नेह है इसलिए अपने मित्रों का वर्ग तैयार किया है। उसमें अहं है, अत: विशिष्टता का चयन किया है । ये सारे संबंध उपयोगिता के आधार पर बने। आपस में मिलजुल कर रहते हैं, इतने मात्र से अहिंसा की कल्पना कर लेना शायद संगत बात नहीं है। इन सारे संबंधों से व्यावहारिक अहिंसा फलित हुई है । एक आदमी दूसरे आदमी को नहीं सताता। पड़ौसी पडौसी को नहीं सताता । परिवार का आदमी परिवार को नहीं सताता। क्या यह अहिंसा है ? अगर अहिंसा है तो थोड़ी स्वार्थ की पूर्ति न होने पर पता लगे कि क्या होता है ? कैसा रंग खिलता है ? स्वार्थ से जुड़ी अहिंसा __ पति और पत्नी का स्वार्थ जुड़ा हुआ है। पति पत्नी को नहीं सताता और पत्नी पति को नहीं सताती । किन्तु जहां स्वार्थ की टक्कर होती है वहां पति-पत्नी में भी झगड़ा हो जाता है । भाई भाई को नहीं सताता किंतु जहां स्वार्थ की टक्कर होती है वहां वे झगड़े पर उतारु हो जाते हैं । ऐसी अनेक घटनाएं मिलती हैं कि पति पत्नी को मार देता है और पत्नी पति को मार देती है। यदि साथ में रहने को अहिंसा मान लें तो हिंसा की बात हो ही नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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