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________________ वैचारिक जीवन और समन्वय ६१ नहीं। अमेरिका जानता है यदि मैंने अणुअस्त्रों का प्रयोग किया तो रूस मुझे नहीं छोड़ेगा। अमेरिका के अणुअस्त्रों का भंडार रूस को डरा रहा है तो रूस के अणुअस्त्रों का भंडार अमेरिका को डरा रहा है। दोनों डर रहे हैं, इसलिए संतुलन बना हुआ है। कोई भी इनका प्रयोग करने की बात नहीं सोच रहा है। यह एक चिंतन है। क्या इसे गलत माने ? अहिंसा की दृष्टि से सोचने वाले लोग यह मानते हैं कि शस्त्रों का निर्माण होना ही अशांति का कारण है । आज विश्व में जितनी अशांति और जितना भय का वातावरण बना है, यह सब अणुअस्त्रों के कारण ही बना है इसलिए सारे शस्त्रों को समाप्त कर देना चाहिए। वे मानते हैं-शांति का मार्ग है-शस्त्रों की समाप्ति । अतीत : वर्तमान विश्वशांति के लिए शस्त्रों का निर्माण और विश्वशांति के लिए शस्त्रों की समाप्ति । इन दो विचारों में कौन-सा सही है और कौन-सा गलत है। किसे झूठ मानें और किसे सत्य मानें। अगर अणुअस्त्रों को बनाने वालों को गलत मानें तो शायद न्याय नहीं होगा। यह माना जा सकता है कि आज पुराने जमाने की तरह कोई भी व्यक्ति जल्दी तलवार नहीं उठा सकता । एक जमाना था, थोड़ी-सी कोई बात होती, म्यान से तलवार निकल जाती। आज ऐसा कोई नहीं करता। आज कोई समस्या आती है तो संयुक्तराष्ट्र संघ में इकट्ठे होते हैं और समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं, चिंतन करते हैं। एक-एक समस्या के लिए सैकड़ों-सैकड़ों मीटिंगें करते हैं, एक-एक विषय पर निरन्तर चर्चाएं करते हैं। अभी कुछ मास पूर्व रूस और अमेरिका में मध्यमदूरी के प्रक्षेपास्त्रों की समाप्ति के लिए एक समझौता हुआ है। क्या इन प्रक्षेपास्त्रों को समाप्त करने की बात एक ही मीटिंग में तय हो गई ? यह प्रस्ताव सन् ८० से ही चल रहा था और आज तक न जाने कितनी मीटिंगों के बाद यह बात यहां तक पहुंची है। आज सीधी तलवार नहीं निकलती। आज पुराने जमाने वाली यह बात नहीं रही कि या तो सामने वाला मर जाएगा या तलवार निकालने वाला मर जाएगा। उस समय इससे आगे और कुछ नहीं था। आज सब जानते हैं कि किसी एक राष्ट्र ने अणुअस्त्रों का प्रयोग किया तो सारा संसार उसकी चपेट में आ जाएगा। सापेक्षता की समझ विकसित हो जैन न्याय के दो प्रसिद्ध शब्द हैं नय और दुर्नय । अनेक सत्यांशों को सापेक्षदृष्टि से देखना नय है और उन्हें निरपेक्ष सत्य मानना दुर्नय है । हमारा सारा व्यवहार, वचन और विचार सापेक्ष है। कोई भी विचार निरपेक्ष नहीं है, इसका अर्थ है--कोई भी विचार परिपूर्ण नहीं है। कोई भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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