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________________ ९८ अहिंसा के अछूते पहलु कहेगा-आज भोजन अच्छा बना है। दूसरा तत्काल प्रतिवाद करेगाक्या खाक अच्छा बना ? बिलकुल खराब बना है । कोई कहेगा-नमक नहीं है, कोई कहेगा नमक बहुत ज्यादा है और बात-बात में एक विवाद खड़ा हो जाएगा। वचन हो और विवाद न हो-यह भाग्य से ही कहीं-कहीं खोजा जा सकता है। समन्वय का दृष्टिकोण प्रत्येक वचन के साथ विवाद जुड़ा हुआ है और मनुष्य इस मौलिक समस्या से आक्रान्त है । व्यवहार भी एक समस्या है। कोई आदत बन गई और कहा जाए कि इस आदत को छोड़ो। यह आदत बुरी है। तंबाक पीते हो, शराब पीते हो, मादक वस्तु का सेवन करते हो, यह अच्छा नहीं है । पान-पराग खाते हो, जर्दा खाते हो, यह अच्छा नहीं है । मनुष्य कहता हैये कैसे छूट सकते हैं ? मैं इन्हें छोड़ नहीं सकता। प्राय: ६० व्यक्ति यही कहेंगे कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। किसी की आदत है झगड़ा करना । उसे कहा जाए कि एक परिवार में रहना है तो झगड़ा मत करो। उसका कथन होगा-नहीं, मैं नहीं बदल सकता । पूरा जीवन इसी प्रकार बिता दिया, इतने साल हो गए अब क्या बदलूगा ? मैं नहीं बदल सकता, मैं नहीं बदलूंगा। जब तक समन्वय का दृष्टिकोण विकसित नहीं होता तब तक आदत को बदला नहीं जा सकता। छोड़ना, लेना और उपेक्षा करना-- इन तीनों के योग का नाम है समन्वय । अगर मनुष्य के व्यवहार में ये तीनों बातें नहीं हैं तो वह शान्तिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता। यदि हम पुरानी आदत को छोड़ना नहीं जानते, नई आदत का निर्माण करना नहीं जानते और कुछ बातों की उपेक्षा करना नहीं जानते तो झगड़ों से, विवादों से और युद्धों से बचा नहीं जा सकता। समन्वय के बिना विश्वशांति नहीं माज विश्वशांति की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है-अणुशस्त्रों की सीमा होनी चाहिए, अणुशस्त्रों की समाप्ति होनी चाहिए। विश्व के सिर पर जो अणुअस्त्रों का खतरा मंडरा रहा है, मनुष्य जाति के लिए वह एक बड़ा खतरा है। वह समाप्त होना चाहिए । इसकी बहुत वर्षों तक चर्चा चली, पर कोई परिणाम नहीं आया। परिणाम क्यों नहीं आया ? विश्व शांति के लिए कुछ छोड़ना जरूरी है और कुछ की उपेक्षा करनी जरूरी है। ये तीन सूत्र जब तक हमारे व्यवहार के साथ नहीं जुड़ेंगे तब तक विश्वशांति की चर्चा केवल वाचिक चर्चा ही रहेगी, सार्थक नहीं होगी। इसकी सार्थकता के लिए तीनों बातें बहुत जरूरी हैं। जिस राष्ट्र के पास अणुअस्त्रों का भंडार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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