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प्रकाशकीय
भारतीय संस्कृति में धर्म-संघों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । जैन सम्प्रदायों में ही नहीं, बल्कि सभी धर्म-संघों में तेरापंथ धर्म संघ ही एक ऐसा अनुशासित धर्म संघ है जो एक आचार्य के अनुशासन में पूर्णतया मर्यादित है । ७०० साधु-साध्वियों का यह विशाल धर्म- संघ अपने एक आचार्य के नेतृत्व में राष्ट्र के कोने-कोने में पद - विहार कर जन-जन में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना में अपना विशिष्ट योगदान प्रदान कर रहा है। इस धर्म संघ के साधुसाध्वियों के १२५ से अधिक सिंघाड़े ( दल) प्रतिवर्ष भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपने आचार्य की आज्ञा से चातुर्मासिक प्रवास कर ज्ञान, ध्यान, चारित्र की साधना करते हुए जन-जन को चारित्रनिष्ठ एवं सुसंस्कारित बनाने का प्रयास करते हैं ।
प्रस्तुत प्रकाशन में तेरापंथ धर्म संघ की स्थापना काल से आज तक २२५ वर्षों की अवधि में साधु-साध्वियों ने जिन-जिन क्षेत्रों में चातुर्मास प्रवास किया है, उनका समग्र विवरण तालिकाओं के माध्यम से प्रकाशित है । इस दीर्घ अवधि एवं बहुसंख्यक साधु-साध्वियों के चातुर्मासिक प्रवास के वर्गीकृत विवरण को नियोजित रूप से प्रस्तुत करना एक बड़ा ही दुष्कर कार्य मुनिश्री नवरतनमलजी ने अत्यन्त श्रमपूर्वक सम्पन्न किया है, वह मुनिश्री की श्रमसाधना में अभूतपूर्व निष्ठा का परिचायक है ।
जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा प्रकाशित यह साहित्य संघनायक भारत ज्योति आचार्य तुलसी के निर्देशन से प्रस्फुटित एक नवीन ऐतिहासिक प्रकाशन आयाम की स्थापना है ।
दिनांक २२ फरवरी, १९८६ जैन विश्व भारती, लाडनूं ( राज० )
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श्रीचंद बैंगानी मंत्री
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