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आशीर्वाद एवं पुण्य-प्रभाव से सानंद सम्पन्न हो गया। इसमें कई व्यक्तियों का सहयोग भी रहा, जिसमें विद्यार्थी मुनि जम्बूकुमारजी का श्रम उल्लेखनीय है । उन्होंने अनुक्रमणिका बनाने में तथा पुनर्मिलान में अपने अध्ययन का काफी समय इसमें लगाया।
पुस्तक को पढ़ने से प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्ति को जहां अपने यहां के चातुसों की पूरी जानकारी मिलेगी एवं ऐतिहासिक प्रमुख-बिन्दुओं की अवगति होगी, वहां अपने क्षेत्रीय इतिहास संकलन की भावना भी जगेगी । अन्त में मैं सभी को यही प्रेरणा देता है कि तेरापंथ धर्मसंघ के प्रत्येक सदस्य तेरापंथ इतिहास के पठन-पाठन में अपनी अभिरुचि पैदा कर उसका गहराई से अध्ययन करें। इससे उन्हें ऐतिहासिक तथ्यों की बहुमुखी जानकारी मिलेगो और धर्मसंघ के प्रति निष्ठाभाव जागृत होगा।
-मुनि नवरत्नमल
जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) वि० सं० २०४२, माघ कृष्णा १२ ६ फरवरी, १९८६ गुरुवार
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