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प्रस्तुति
सामायिक की निष्पत्ति है ध्यान और ध्यान की निष्पत्ति है सामायिक | ध्यान और सामायिक के बीच भेदरेखा खींचना बहुत कठिन है । दोनों का बाहरी आकार भिन्न है, अन्तरात्मा एक है ।
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लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दा - प्रशंसा-इन सब घटनाचक्रों में सम रहना, अप्रकंप रहना साधना का सर्वोच्च शिखर है । इस शिखर पर आरोहण करने का साधन है सामायिक |
हिंसा, असत्य, संग्रह- ये विषमता की ओर ले जाते हैं । इनसे मुक्त होने का अभ्यास है सामायिक |
कलह, दोषारोपण, चुगली, निन्दा, मिथ्यादृष्टिकोण - ये सब मानसिक शांति और सामुदायिक शान्ति के विघ्न हैं । इन विघ्नों के निवारण की साधना है सामायिक |
सामायिक आध्यात्मिक चेतना के जागरण का प्रयोग है । अध्यात्म सार्वभौम तत्त्व है । इसका किसी देश, जाति, वर्ण और संप्रदाय से संबंध नहीं होता । वह किसी पक्ष से आबद्ध नहीं होता ।
सामायिक स्वयं ध्यान है । फिर भी उसमें ध्यान के विशेष प्रयोग किये जाते हैं । पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग प्रस्तुत कर सामायिक के आध्यात्मिक स्वरूप को उजागर किया है । जिस व्यक्ति ने उसका प्रयोग किया है, उसमें अभिनव आकर्षण उत्पन्न हुआ है । कुछ लोग अपने को व्यस्त मानकर सामायिक की साधना से वंचित रह जाते हैं । उनका दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है ।
सामायिक की अड़तालीस मिनट की साधना एकाग्रता की साधना है ।
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