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________________ समता की चेतना का विकास जागरूकता का अन्तिम बिन्दु है समता | यह आज का प्रिय शब्द है | विषमता के विषय में जितना चिन्तन वर्तमान युग में हुआ है, उतना अतीत में नहीं हुआ होगा | आज सामाजिक और आर्थिक विषमता मान्य नहीं है । इनके विषय में अनेक क्रांतियां घटित हुई हैं और अनेक भविष्य के गर्भ में हैं । समाज के स्तर पर समता चाहिए । आर्थिक समानता भी अपेक्षित है। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि आज का सबसे अधिक अप्रिय शब्द है विषमता और सबसे अधिक प्रिय शब्द है समता । आज के विचारकों ने सामाजिक और आर्थिक विषमता के विषय में बहुत चिन्तन किया है, किन्तु चैतसिक विषमता और समता के विषय में कम चिन्तन किया है | हम सोचें, आर्थिक और सामाजिक विषमता का कारण क्या है ? मनुष्य के चित्त की स्थिति समतामय नहीं है, इसलिए उसका प्रतिबिम्ब सामाजिक व्यवस्था पर भी पड़ता है और अर्थ-व्यवस्था पर भी पड़ता है पर हमने मूल कारण को परदे के पीछे रखा है और जो मूल कारण नहीं है, उसको बहुत आगे ला दिया है, उसे ही सिंहासन पर बिठा दिया है । यही कारण है कि समस्या सुलझने के बदले उलझती जा रही है । द्वंद्व है संसार सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन की सरलतम परिभाषा यह की जा सकती है कि द्वन्द्वों का जीवन संसार का जीवन है और द्वन्द्वमुक्त जीवन अध्यात्म का जीवन है । चेतना के स्तर पर अनेक द्वन्द्व हैं और ये द्वन्द्व संसार का निर्माण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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