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________________ निर्द्वन्द्व चेतना है समता १६३ - दुःख तो तनाव पैदा करता ही है । थोड़ा सा दुःख आता है, दुःख की स्थिति आती है, आदमी तनाव से भर जाता है । ) जीवन और मरण जीवन और मरण भी तनाव पैदा करता है । जब जीवन बहुत लम्बा हो जाता है तब कभी-कभी आदमी कहता है-मैं तो जीते-जीते थक गया, ऊब गया । प्रसिद्ध कहानी है | एक बुढिया ने कहा-मैं इतनी बूढ़ी हो गई, अभी तक बुलाबा नहीं आया । उसने ग्रामीण भाषा में कहा-'ऐसा लगता है कि रामजी मेरी चिट्ठी भूल गए | मुझे बुलाया नहीं, निमंत्रण नहीं दिया ।' वह जीवन से ऊब गई थी और ऊब तनाव पैदा कर रही थी । मरण भी तनाव पैदा करता है । वह बुढ़िया जिस झोंपड़ी में रहती थी, एक दिन उसमें काला नाग निकला । नाग को देखते ही बुढ़िया चिल्लाई । बाहर भागी | उसने जोर से गांव वालों को पुकारा-आओ ! आओ ! सांप... सांप भयंकर काला नाग है, इसे पकड़ो | लोग इकट्ठे हुए, बोले-बुढ़िया मां ! तुम रोज कहती थी-रामजी मेरी चिट्ठी भूल गए | मेरी चिट्ठी चूहे खा गए । आज तो सहज. ही चिट्ठी आ गई थी । तुम भागी क्यों ? बुढ़िया ने मासूम स्वर में कहा-'वीरां ! मरणो दोरो लागै ।' मरना बड़ा कठिन लगता है। जीवन और मरण-दोनों तनाव पैदा करते हैं, किन्तु जिस व्यक्ति ने अपने मन को शिक्षित कर लिया, उसमें न जीवन तनाव पैदा करेगा और न मरण तनाव पैदा करेगा । जो मरण का वरण करते हैं, अनशन करते हैं, समाधिमरण की प्रक्रिया में चलते हैं, उन्हें मरने का कोई डर नहीं होता, कोई तनाव नहीं होता। निंदा और प्रशंसा निंदा और प्रशंसा भी तनाव पैदा करती हैं । बहुत ज्यादा प्रशंसा होती है तो आदमी सुनते-सुनते ऊब जाता है, एक तानव पैदा हो जाता है । निंदा सुनते ही आदमी का आवेश प्रखर हो जाता है, चेहरा तनाव से भर जाता है। जिस व्यक्ति का मस्तिष्क प्रशिक्षित है, वह न प्रशंसा की स्थिति में तनाव में आएगा और न निंदा की स्थिति में तनाव में जाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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