________________
१५
मारा पूजनीय परमोपकारी परमशासनप्रभावक परमगुरुदेवोना अमेय उपकारने हुं आ अवसरे याद करूं छं, के जेओनी असीम कृपादृष्टिना योगे हुं रत्नत्रयीनी आराधना यथाशक्ति करी शकुं छं. प्रस्तुत संपादन कार्यमां मने पूर्ण हितभावथी मार्गदर्शन आपनार पूजनीय शासनप्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजयक्षमाभद्रसूरीश्वरजी महाराजजीना ए वात्सल्यभावने हुं केम भूली शकुं ?
प्रान्तेः प्रेसदोष, प्रुफसुधारणानो दोष के अन्य अज्ञानताजन्य स्खलना आ ग्रन्थमां रहेवा पामी होय तेनुं परिमार्जन करवापूर्वक विद्वान अने अभ्यासी वर्ग आ काव्यग्रन्थनुं अध्ययन-अध्यापन करी, श्रीजिनकथित श्रुतधर्मनी आराधनामां पोतानुं वीर्य फोरवो अने आत्मकल्याणने साधो ए अभिलाषा.
वि० सं० १९९६, श्रावण शुक्ला पूर्णिमा. जैनशाळा-टेकरी, स्थंभनतीर्थ. [खंभात]
पू० परमशासनप्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजयराम चन्द्रसूरि - विनेयाणु मुनि कनकविजय
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org