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________________ १०२ विजसेनसूरिविरचित [ पश्चदर्श दीसइ दिसि दिसि कुंडि कुंडि नीझरणउ मालो । इंद्रमंडपु देपालि मंत्रि उद्धरिउ विसालो ॥१८॥ अइरावणगयरायपायमुद्दासम टंकिउ । दिट्ठ गयंदमुकुंड विमलु निज्झरसमलंकिउ ॥ १९ ॥ गयणगंग जं सयलतित्थअवयारु भणिज्जइ । पक्खालिवि तहि अंगु दुक्ख जलअंजलि दिजइ ॥२०॥ सिंदुवार-मंदार-कुरबक-कुंदिहि सुंदरु । जाइ-जूइ-सयवत्ति-वित्तिफलेहि निरंतर ॥२१॥ दिट्ठय छत्रसिलकडणि संबवणु सहसारामु । नेमिजिणेसरदिक्ख-नाण-निवाणह ठामु ॥ २२ ॥ ॥ तृतीयं कडवं ॥ ॥४॥ गिरिगरुया सिहरि चडेवि, अंब-जंबाहि बंबालिउं ए । संमिणी ए अंबिकदेविदेउलु दीठु रमाउलं ए वज्जइ ए ताल कंसाल, वज्जइ मद्दल गुहिरसर । रंगिहिं ए नच्चइ बाल, पेखिवि अंबिकमुहकमलु सुभकरु ए ठविउ उच्छंगि, विभकरो नंदणु पासिक ए । सोहइ ए ऊर्जिलसिंगि, सामिणी सीहँसिंघासणी ए दावइ ए दुक्खहं भंगु, पूरइ वंछिउ भवियजण । रक्खइ ए चउविहु संघु, सामिणी सीहसिंघासणी ए दस दिसि ए नेमिकुमारि, आरोही अवलोइउं ए । दीजइ ए तहि गिरनारि, गयणंगणु अवलोणसिहरो पहिलइ ए सांबकुमार, बीजइ सिहरि पजून पुण । पणमई ए पामइं पारु, भवियण भीसण भवभमण ठामि ठामि ए रयणसोवन्न, बिंब जिणेसर तहिं ठविय । पणमइ ए ते नर धन्न, जे न कलिकालि मलमयलिया ए जं फलु ए सिहरसंमेय, अट्ठावय नंदीसरिहिं । । तं फलु ए भवि पामेइ, पेखेविणु रेवंतसिहरो गहगण ए माहि जिम भाणु, पन्वयमाहि जिम मेरुगिरि ए । त्रिहु भुयणे ए तेम पहाणु, तित्थमाहि रेवंतगिरि धवल धय ए चमर भिंगार, आरत्ति मंगलपईव । तिलय मउड ए कुंडल हार, मेघाडंबर जावियं ए १ दशे दिशामां ॥ २ झरणांनी माला ॥ ३ आंबा अने जांबूनां झाडोथी ॥ ४ स्वामिनी ॥ ५ रमणीय ॥ ६ उजयंतभंगे ॥ ७-८ अम्बिकादेवी ॥ ९ मलमलिनिताः मलमेला ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002919
Book TitleVastupal Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1963
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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