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APPENDIX
1OR
With st. 115–116 cf.
जह पीणसमुण्णअसंगअआ थणआ
जर मंथरलोभणभूसिमों वअणं । जह वित्थरपीणविसंतुलओ जहणो
जई तम्बिरपल्लवकोमलओं अहरो॥
ता कीस हिअअ रतिदिअं च णो णिव्वुइं तुझं लहसि । ..... बुल्लहमम्गिर विणिअत्त अहव संतो णिअत्तिहिसिक
Vis. IV 74-75. With st. 119 of.
पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गंभीर। मथि प्रगटेउ सुर-साधु-हित कृपासिंधु रघुवीर ॥ .
raakarrah (the Mula-gate edition),
II 298 end. मला पयोनिधि मंदर ग्यान संत सुर आहि । कथा सुथा मथि काढहीं भगति मधुरता जाहिँ ॥
रामचरितमानस, VII 120. With st. 124b ef. विरह-करवत्त-दूसह-फालिजंतम्मि
Hala's सप्तशतकम् (ed. Wamaste With st. 137 ef. सीयलु विसु विसु ष ण संति जणइ हरियंदणु सिहिकुलु अंगुहा पलिणु वि सूरहु सयणत्तु वहइ सयणीयलि चित्तउ देहु डहर 1ste.. - Puspadanta's महापुराण (ed. P. L. Vaari)
LXXIII. 3. 8-9. With st. 171 cf.
णव-विस-कसाय-संसुद्ध-कंठ-कल-मणोहरोणिसामेह ।
सरय-सिरि-चलण-उर-राओ इव हंस-संलाचो ॥२६॥ ___ occurring on p. 8 of the लीलावईकहा of Kouhaka (being stirted by Dr. A. N. UPADHYE for the Singhi Jain Series).
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