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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org The oldest known Bhartrhari Codex, samvat 1500. किलपालियेारविक नदारदार कामदिम शोदरा मृगाला माया मिया मायमस दमसमा यामिनीया तिथून ॥ मातदभिध समाविष्ठामतः कामी विना विशिविशते । पामोरून नका मिनीनशतादिभिमुखा धन्याः श्वशतके मकानो झिपनाचा मला काम कल्याणिकं पंगानित बार वारसदार सी नोट दोपीमा प्रायः प्रतिमांता कांता नानागंमत्री र कामकला कामापादयंत करुना के पास का नियुक्त कांता मामा विश्व शिशघांतिवासाः ॥ विपत्का नीला कमाएर मलिक सुविदा पर मात्रा पास कियागयापचारिणिवा चिणि। श्रममपास ममो हारि लिहारिणि ॥ ५२ वा बार मसिन सिप्रोल निप्रामान्यपततिष्टषमा मात्र निवाया इदासादा मा नायं विनसिदेव स्नाविधवा।। • कशा संयमिनः कातरपि परं पारं जाताना सर्व मपि खभावा विभिन्कीलाई जाना गाणे नसता विवासरु विप्रशांत ॥सरकारमधूम (कसर निकर तामाद मृतिदिनाविधुरमा मानि पानात विषद्धतिविषयाणा विश्रामिषपरत्वापत्राशि पाक विमागता । बहार यादयामास मरियनिग्रहक घमादा क्षेत्रः समाला कमां॥ ए८ सिट बली द्विरद भूकरमांस नोजी। संझर तिमिति किलिकधारे परापतः खलकलाक सोनाक्षिकामी शनि को 1 0 5 मिश्री रामधिराज नगरसभा ॥ श्रीक्षा संकट वार्षका ३०३ शिन प्रशिक्षा-सोममा अनग्वि ॥ खयशे पञ्चसाय॥ ॥ श्रीः ॥ 北川 ॥ श्रद ॥४॥ संघ लिखकर वश्रीः ॥ ॥ श्री A. Srigāra Colophon, Pratisthasomagapi's autograph, गयपाछाय मां किं नाशयामा माध्यम समं पीक कि किंद्यानंद प्राय नियमित काम तिथि हिंदी वापामितिः ॥६ इथं मां भयो यतिकर झज्ञाला शांताद विशेश की विरमसि रु. सरसफलतालिम प्रापघनाम -स्कूलितानि गंगासरंग करणशीकर मवतः प्रलयगता भिमादमान पर पिडरता मसु दष्ठांतिप्रश्मकरग्राह, मिश्रथाधरागत्यं सयपाल पतिप्रार संघमा मा०० १४ दिन प्रतिष्ठा (सामग] (मा मराजी (एशिंगेतर इथली मंडि प्रर्वशः समाशं किविशतिमा विद्याश्या रूमयः छमिय धाकधनमिदं किं क्षुः सिकिम शासनथा गतामा हाम्माकं स्मरक किं कंदा. कंदारा प्राय स गत्ता मिर्जशधा गिरिः प्रधावा सुखा मिश्रयाणां वाला मां दुःखापाखा विनाय शीतला नि। विद्याधरामिया शिलातला नि। खाशा भिकिं दि प्यासा मरु श्रीमानिस विशुशांती मिदिता.समु संधूर निघर पादेश पिताधारी रिकाधा अकिरितक साधुशरावेशय घातक नामात समाप्त ॥ ॥ श्री ॥ लिखित। ॥ श्राश्रमाणसघस्य॥ ॥छ। श्री ।। श्रीराणां तदक्षिणितं नामाष्टाकपालानि निर्दिशतिनामसा पाको तिविंशविला राशिमेाल संगतता ॥ सनको निमिनः सागरा विमानाला व धरणासारख्या दानाय धमंत्रमथिनाविताःपरोपकार मिनीटारमोनियमवर कष्टक साक्ष काय वदतिः कमसिन राईसकि आणि नराधिपरामर दादी कल B. Vairagya Colophon, Pratisthasomagani's autograph.
SR No.002915
Book TitleShataka Trayadi Subhashit Sangraha
Original Sutra AuthorBhartuhari
AuthorDharmanand Kosambi
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1948
Total Pages346
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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