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भर्तृहरिसुभाषित संग्रहे
दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश् च नोत्पद्यते
पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत् ॥ १५१ ॥ दीना दीनमुखैः सदैव शिशुकैराकृष्टजीर्णाम्बरा कोशद्भिः क्षुधितैर्नरैर्न विधुरा दृश्येत चेद् गेहिनी ।
याच्ञाभङ्गभयेन गद्गद्गलत्रुट्यद्विलीनाक्षरं
को देहीति वदेत् स्वदग्धजठरस्यार्थे मनखी पुमान् ॥ १५२ ॥ निवृत्ता भोगेच्छा पुरुषबहुमानो विगलितः
समानाः स्वर्याताः सपदि सुहृदो जीवितसमाः । शनैर्यष्टयुत्थानं घनतिमिररुद्धे च नयने
अहो धृष्टः कायस् तदपि मरणापायचकितः ॥ १५३ ॥
BIS. 931 (339) Bhartr. ed. Bohl. 3. 44. Haeb. and Galan 40. lith, ed. I. 32 (41), II. 7. Subhash. 78. Santis. 4. 24 ( Haeb. p. 429 ) ; SRE. p. 369.80; SBH. 3327; SRH. 196. 25 (Bh.); SN. 298; PMT. 292 (Bh.); SSD. 4. f. 21b; SSV. 164; JSV. 131. 2.
152 ) B2 F1 दीनाद्दीन ; C D दीनां दीन-. [E com. दीनादीन - दीनानि च अदीनानि च ]. JW X2 Y2. 3. 6 G1.3.6 M स्वकीय- (for सदैव ). J3 आकुप्य- (for भाकृष्ट-). CF3 W1 - जीर्णांबरां. - १ ) A3 क्षुधितैर्जनैर्न विधुरा; B1 विधुरैः क्षुधातिविधुरा; B2 क्षुधितैर्नि तांतविधुराः विधुरैः क्षुधार्तिविधुरां; D F3. 5 I J We X Y 1.2.+ 8 ↑ G1.4_M1.2.4.5 क्षुधितैर्निरन्नविधुरा (F's We धुरां J दुरा); F2 विधुरैर्नरैर्न विधुरा; क्षुधिताननैर्न विधुरा. Wt M: क्षुधितैर्निरन्नजठरैर् ; Y3 G23 क्षुधितैर्निरन्नजठरा; क्षुभितैर्निरन्नजठरो B1 Fm.v. Y1, 2, 4–8 'T_G2–5_M1.5 दृश्या न; C पश्येत; F5 दृष्ट्वैव; G1 M1. 2 दृष्टा न ( for दृश्येत ). B चेद्रेहनी; C W1 चेद्वेहिनीं; Fs तां गेहिनीं. - ) Y3 यन्नाभंग. Eo. 3 ( and Ec? ) Ha गलत्रुट्यद्-; W1.1 X 1 - गलत्तद्वद्; Ys -गलं तद्वद्; T3 गलस्तृप्यद्. J - विलीनाक्षरः; Yant - विलीनाक्षरा ; G1 - विहीनाक्षरं – 2 ) B2 च दग्ध - ; F + (m.v. as in text ) स्वदेह - ; Y3 स्वकीय-; M4 सुदुग्ध- C जठरस्यार्थो A3 जनः (for पुमान् ).
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BIS. 2813 (1163) Bhartr. ed. Bohl. 3. 22. Haeb. and Galan 19. Jith, ed. I, III. 20, II. 8. Satakāv. 97; SRB. p. 97. 12 ( Bh. ) ; SBH. 3196 ( Bh. ) ; SRK. p. 77. 1 (Bh.); Tantrākhyāyikā II. 76; SHV. app. I f. 1. 1 ( Bh. ) ; SSD. 2. 1. 137b. 153) Ms वपुषि (for पुरुष ). A Jie बहुमानं; W1.2.4 मानैर् 4 विगलितं; F1. 3_Y3–6. 8 T G_M2 1 [s]पि गलितः - 1 ) A2 स्वपदि; Fm. v. संगति- (for सपदि ). "> A0–2 E2–4 (and Ec ) Hit X यद्युत्थानं; D Fo Y1 Hst यष्ट्योत्थानं; Est यस्योत्थानं; Esc यस्य स्थानं; F2 यात्युत्थानं; J3 यष्ट्यत्तानं C -बद्धे Y1 दुग्धे; G1 - विद्धे (for - रुद्वे ). – 4) [ To avoid hiatus] G1 M1 - 3 [s] यहो ; G+ त्वहो. A2 Eit H2 I दृष्टः; C भ्रष्ट; DFs J_W_Y2.4–7_G2,3 M1.5 दुष्टः ; X हृष्टः; Ys दक्षः T Go मूढ: ; G1 कष्टं G+ M1-3 कष्टः (for धृष्टः ). Ei com. घृष्टः = निर्लज्ज: Eot Y3 मरणोपाय ; Fem.v. मरणौपाय .
BIS. 3772 (1615) Bhartr. ed. Bohl. lith. ed. I Galan 3. 10. Haeb. 10 and 93. lith. ed. II. 9; SRB. p. 77. 44; SBH. 3398, SRH. 196. 23 ( Bh.) ; SRK. p. 67.7 (Rasikajivana); SU. 1013; SM. 1484 ; PMT. 288 ( Bh.) ; SSD. 4. 1. 8b; SSV, 1467.
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