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५१७] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से चतुरिन्द्रिय जीवों के हजारों प्रकार हैं ||१५४॥
Due to colour, smell, taste, touch and form there becomes thousands kinds of foursensed mobile beings. (154) पंचेन्द्रिय त्रसकायिक जीवों की प्ररूपणा
पंचिन्दिया उ जे जीवा, चउव्विहा ते वियाहिया ।
नेरइया तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥१५५॥ जो पंचेन्द्रिय त्रसकायिक जीव हैं, वे चार प्रकार के कहे गये हैं-(१) नैरयिक (२) तिर्यंच (३) मनुष्य और (४) देव ॥१५॥ ___Five-sensed movable beings are of four kinds-(1) Hellish (2) Crooked beings or animals, birds etc. (3) men-human beings and (4) gods. (155) नैरयिक त्रस जीव प्ररूपणा
नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसू भवे ।
रयणाभ-सक्कराभा, वालुयाभा य आहिया ॥१५६॥ नैरयिक सात प्रकार के हैं, वे सात पृथिवियों (नरक भूमियों) में उत्पन्न होते हैं। वे सात पृथिवियाँ हैं(१) रत्नाभा, (२) शर्कराभा, (३) बालुकाभा-॥१५६।।
Denizens of hells are of seven kinds, because hells are seven, these souls take birth in seven hells, the names of hells are-(1) Ratnābhā (2) Sarkarābhā (3) Bālukābhā-(156)
पंकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा।
इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥१५७॥ (४) पंकाभा (५) धूमाभा, (६) तमा और (७) तमस्तमा-इन सात पृथिवियों में उत्पन्न होने के कारण नैरयिक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं ॥१५७॥
(4) Pankābhā (5) Dhumabhā, (6) Tama and (7) Tamastama-due to taking birth in these hells, the hellish beings are called of seven kinds. (157)
लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे उ वियाहिया ।
एत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥१५८॥ वे सभी नैरयिक (नारकी) जीव लोक के एकदेश (अंश या भाग) में ही हैं-ऐसा कहा गया है। अब इससे आगे मैं उन नारकी जीवों का चार प्रकार का काल-विभाग कहूँगा ॥१५८॥
All these hellish beings are in a part of universe (loka). Now I shall describe fourfold divisions of these beings regarding time. (158)
संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१५९॥ संतति-प्रवाह की अपेक्षा से नारक जीव अनादि और अनन्त हैं तथा स्थिति की अपेक्षा से वे सादि और सान्त भी हैं ॥१५९॥
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