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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [५०४
The maximum duration of water-bodied beings is of seven thousand years and minimum duration is of antarmuhurta. (88)
असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहत्तं जहन्निया ।
कायट्टिई आऊणं, तं कायं तु अमुचओ ॥८९॥ अप्कायिक जीव, यदि अकाय को न छोड़कर लगातार उसी में जन्म-मरण करते हैं, वह उनकी कायस्थिति कहलाती है। उनकी कायस्थिति उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है तथा जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ॥२९॥
The body-duration (continuous births and deaths in the same body) of water-bodied beings maximumly is of innumerable time and minimum of antarmuhurta. (89)
अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजमि सए काए, आऊजीवाण अन्तरं ॥९०॥ अपनी काय (अप्काय) को छोड़कर (अप्काय से निकलकर अन्य कायों में जन्म-मरण करने के बाद) पुनः अप्काय में उत्पन्न होने का अन्तर (अन्य कायों में बिताया गया समय-मध्यवर्ती अन्तराल) उत्कृष्ट अनन्तकाल का और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है ।।९०॥
The interval period of water-bodied beings is maximumly of infinite time and minimumly of antarmuhurta. (90)
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रस-फासओ ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥९१॥ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के आदेश-अपेक्षा से भी अप्कायिक जीवों के हजारों प्रकार कहे गये हैं ॥११॥
With regard to colour, smell, taste, touch and form, thousands of kinds are said of water-bodied beings. (91) वनस्पतिकाय की प्ररूपणा
दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा ।
पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥९२॥ दो प्रकार के वनस्पतिकायिक जीव हैं-(१) सूक्ष्म और (२) बादर। पुनः इन दोनों के दो-दो भेद और हैं-(१) पर्याप्त और (२) अपर्याप्त ॥९२॥
Vegetation or flora bodied beings are of two types-(1) subtle and (2) gross. These are again sub-divided into two kinds-(1) fully developed and (2) undeveloped. (92)
बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया ।
साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥९३॥ पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-(१) साधारण शरीरी (अनन्त जीवों का निवास स्थान-पिंड) और (२) प्रत्येक शरीरी (एक जीव का निवास स्थान) ॥९३॥
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