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४८७ ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र Mh
छत्तीसइमं अज्झयणं : जीवाजीवविभत्ती षट्त्रिंश अध्ययन : जीवाजीव-विभक्ति
जीवाजीवविभत्तिं, सुणेह मे एगमणा इओ ।
जं जाणिऊण समणे, सम्मं जयइ संजमे ॥१॥
जीव और अजीव के विभाग (विभक्ति) को मुझसे एकाग्रचित्त होकर सुनो; जिसे जानकर श्रमण संयम में सम्यक् प्रकार से यतनाशील बनता है ||१||
Hear from me the division of soul and non-soul with concentrated mind, knowing that the sage exert himself in restrain well. ( 1 )
जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीवदेसमागासे, अलोए से वियाहिए || २ ||
जीव और अजीव जहाँ हैं, वह लोक कहा गया है। और अजीव का एक देश ( विभाग या अंश) जो (मात्र) आकाश है, वह अलोक (अलोकाकाश) है ॥२॥
Where exists soul and non-soul. That is called world (loka) and the one part of non-soul, that is space; where only space exists that is aloka (alokākāśa). (2)
दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा ।
परूवणा तेसिं भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ३ ॥
उन जीवों और अजीवों की प्ररूपणा-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से की जाती है ॥ ३॥
Soul and non-soul are described with reference to (1) substance (2) place (3) time and (4) developments or attitudes. (3)
अजीव प्ररूपणा
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रूविणो चेवऽरूवी य, अजीवा दुविहा भवे ।
अरूवी दसहा वृत्ता, रूविणो वि चउव्विहा ॥४॥
अजीव दो प्रकार का होता है- (१) रूपी और (२) अरूपी। अरूपी ( अजीव) दस प्रकार का है और रूपी (अजीव ) के चार भेद हैं ||४||
Non-souls are of two kinds - ( 1 ) with form ( rūpi) and (2) without form (arūpi). With form non-souls are of ten kinds and with form non-souls are of four types. (4)
अरूपी - अजीव प्ररूपणा
धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पएसे य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए ॥५॥
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