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४८३] पंचस्त्रिश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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विशेष स्पष्टीकरण
गाथा ४-६-भिक्षु को किवाड़ों से युक्त मकान में रहने की मन से भी इच्छा न करनी चाहिये। यह उत्कृष्ट साधना का, अगुप्तता का और अपरिग्रह भाव का सूचक है।
श्मशान में रहने से अनित्य भावना एवं वैराग्य की जागृति रहती है। चिता में जलते शवों को और दग्ध अस्थियों को देखकर किस साधक को विषय भोगों से विरक्ति न होगी ?
वृक्ष के नीचे रहना भी महत्वपूर्ण है। प्रतिकूलताओं को तो सहना होता ही है। बौद्धग्रन्थ विशुद्धि मार्ग में कहा है कि वृक्ष के नीचे रहने से साधक को हर समय पेड़ के पत्तों को परिवर्तित होते और पीले पत्तों को गिरते देखकर जीवन की अनित्यता का ख्याल पैदा होता रहेगा। अल्पेच्छता भी रहेगी।
गाथा २०-देह के छोड़ने का अर्थ देह को नहीं देहभाव को छोड़ना है, देह में नहीं देह की प्रतिबद्धता-आसक्ति में ही बन्धन है। देह की प्रतिबद्धता से मुक्त होते ही साधक के लिये देह मात्र जीवन यात्रा का एक साधन रह जाता है। बन्धन नहीं।
Salient Elucidations Gathā 4-6-Mendicant should not even wish in the house with door-leaf. This denotes his excellent propiliation, non-secretness and possessionlessness.
The feeling of transitoriness remains awakened dwelling in funeral place. Looking at the corpses and bones in burning pyres, which practiser would not be disinclined to the worldly pleasures and rejoicings.?
To live under the tree is also important. Repugnants are to be tolerated.
The Bauddha scripture, Visuddhi Märga says that by living under a tree, and looking on the falling and becoming yellow the leaves of tree, every moment, the thought of transitoriness always remains active in the mind of propiliator and his wishes also remain a few.
Gatha 20-To quit body does not mean to renounce the body; but to renounce the addictment to body. Because only addictment to body creates bondage. Being free from body-effection the body remains only a means of sustaining life-order for a sage.
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