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४७१] चतुस्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जा कहा ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं तु उक्कोसा ॥ ४९ ॥
कृष्ण लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वही एक समय अधिक नील लेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग (प्रमाण) है ॥ ४९ ॥
Which is the longest duration of black tinge, the shortest duration of blue tinge is more one samaya than that and the longest duration of blue tinge is innumerable part of one palyopama. (49)
जानीला ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥५०॥
जो नील लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति है, वही एक समय अधिक कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति है तथा उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है ||५० ॥
The shortest duration of grey tinge is one samaya more than that of longest duration of blue tinge, and the longest duration of grey tinge is innumerable part of a palyopama. (50) तेण परं वोच्छामि, तेउलेसा जहा
सुरगणाणं । भवणवइ -- वाणमन्तर--, जोइस - - वेमाणियाणं च ॥ ५१ ॥
इससे भागे भवनपति, बाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक देवों की जिस प्रकार की तेजोलेश्या (की स्थिति ) होती है, उसका कथन करूँगा ॥५१॥
Now further I shall tell about the duration of red tinge regarding Bhavanapati, Vanavyantara, Jyotisi and heavenly gods (51)
पलिओवमं जहन्ना, उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया । पलियमसंखेज्जेणं, होई भागेण तेऊए ॥५२॥
तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्योपम है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर की होती है ॥५२॥
The shortest duration of red tinge is one palyopama and longest duration is two sagaras plus innumerable part of one palyopama. ( 52 )
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दस वाससहस्साइं तेऊए ठिई जहन्निया होइ ।
दुष्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥
( भवनपति और व्यन्तर देवों की अपेक्षा से) तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की होती है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर की होती है ॥ ५३ ॥
(Regarding Bhavanapati and Vyantara deities) The shortest duration of red tinge is ten thousand years and longest duration is two sagaras plus innumerable part of one palyopama. (53) जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । पहाए दस उ, मुहुत्तऽहियाइं च उक्कोसा ॥ ५४ ॥
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