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द्वात्रिंश अध्ययन [४४६
in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सव्वं तओ जाणइ पासए य, अमोहणे होइ निरन्तराए ।
अणासवे झाणसमाहिजुत्ते, आउक्खए मोक्खमुवेइसुद्धे ॥१०९॥ तत्पश्चात वह संसार के सभी भावों को जानता-देखता है। मोहनीय और अन्तराय कर्म से रहित होकर आस्रव रहित (अनास्रव) हो जाता है। (तदनन्तर) वह ज्ञान समाधि से युक्त हुआ, आयुक्षय होने पर, शुद्ध होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ॥१०९॥
Then he sees and knows all the substances, attributes, modifications and elements of the three worlds. Becoming free of infatuation and power hindering karmas he stops the inflow of karmas. Then becoming opulent with knowledge contemplation, at the end of lifeduration, being totally purified attains liberation. (109)
सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को, जं बाहई सययं जन्तुमेयं ।
दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अच्चन्तसुही कयत्थो ॥११०॥ वह उन सभी दुःखों से मुक्त हो जाता है जो इस जीव को सतत बाधित (पीड़ित) करते रहते हैं। दीर्घकालिक (जन्म-मरण, कर्म) रोगों से विमुक्त, प्रशस्त, कृतार्थ एवं अत्यन्त सुखी हो जाता है ॥११०॥
Then he becomes exhaustively free from all agonies and miseries which always give pains to the soul. He becomes utmost happy, auspicious, contented (who has nothing to do) and free from all prolonged diseases of births, deaths and karmas. (110)
अणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता, कमेण अच्चन्तसुही भवन्ति ॥१११॥
-त्ति बेमि । अनादिकाल से उत्पन्न होते आये, समस्त दुःखों से मुक्ति का यह मार्ग कहा गया है, जिसे सम्यक् प्रकार से अपनाकर जीव क्रम से अत्यन्त सुखी (अनन्त सुख-सम्पन्न) हो जाते हैं ॥१११॥ -ऐसा मैं कहता हूँ।
This path is told to be free from all agonies, which are being generated from beginningless times. Accepting well this path the souls become most happy-opulent with eternal bliss and beatitude. (111)
-Such I Speak
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