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७] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
मा य चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे ।
कालेण य अहिज्जित्ता, तओ झाएज्ज एगगो ॥१०॥ शिष्य क्रोध के आवेश में आकर (चाण्डालिक कर्म) न असत्य बोले और न क्रूरतापूर्ण व्यवहार करे। अधिक न बोले। अध्ययन काल में अध्ययन करे और बाकी समय एकान्त में ध्यान करे ॥१०॥
Disciple should not do any mean act i.e., violence or telling a lie with the excited mood of anger and cruel behaviour; talk less, should read scriptural texts at proper time and should meditate alone at a lonely place. (10)
आहच्च चण्डालियं कटु, न निण्हविज्ज कयाइ वि ।
कडं 'कडे' त्ति भासेज्जा, अकडं 'नो कडे' ति य ॥११॥ यदि क्रोध आदि कषाय के आवेश में शिष्य ने असत्य भाषण अथवा क्रूर व्यवहार कर भी लिया हो तो उसे छिपाये नहीं; गुरु के समक्ष प्रगट कर दे। यदि किया है तो 'मैंने किया है-ऐसा कहे' और यदि नहीं किया है तो 'मैंने नहीं किया है-ऐसा कहे' ॥११॥
If the disciple had done my mean act due to the excitement of passions, he must not hide it from preceptor. If he had done, he should say-'I have done it', if not-'I have not done it.' (11)
मा गलियस्से व कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो ।
कसं व दठुमाइण्णे, पावगं परिवज्जए ॥१२॥ अनुशासनप्रिय समझदार शिष्य, अड़ियल घोड़े के समान, बार-बार गुरु-आदेश रूप वचनों के चाबुक की इच्छा न करे; अपितु सुशिक्षित उत्तम अश्व के समान गुरु के संकेत को देखकर ही पाप कर्म का त्याग कर दे ॥१२॥
Disciplined, wise disciple should not want the command-whip of preacher (preceptor) like an intactable horse; but he should renounce the sinful activities only by a hint of preceptor like a trained-good horse. (12)
अणासवा थूलवया कुसीला, मिउं पि चण्डं पकरेंति सीसा ।
चित्ताणुया लहु दक्खोवया, पसायए ते हु दुरासयं पि ॥१३॥ गुरु की आज्ञा को सुनी-अनसुनी करने वाले, अधिक बोलने वाले, कुत्सित अथवा दुष्ट आचरण करने वाले शिष्य कोमल-स्वभावी गुरु को भी कठोर (चंड) बना देते हैं। (इसके विपरीत) गुरु-आज्ञापालक, अल्पभाषी, कार्यदक्ष शिष्य क्रोधी (चण्ड) गुरु को भी प्रसन्न तथा प्रशान्त कर लेते हैं ॥१३॥
Heedless, talkative, ill-behaved disciple make rude even a tender-tempered preceptor while obedient, meek, alert and witty disciple pacifies and pleases a rude and angrytempered preacher. (13)
नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्टो वा नालियं वए । कोहं असच्चं कुव्वेज्जा, धारेज्जा पियमप्पियं ॥१४॥
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