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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
खीर - दहि- सप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु, भणियं रसविवज्जणं ॥२६॥
दूध, दही, घी, तथा प्रणीत ( पौष्टिक ) पान - भोजन (आहार) एवं रसों का वर्जन ( परित्याग ) रस-परित्याग तप कहा गया है ॥२६॥
त्रिंश अध्ययन [ ३९६
Renouncement of milk, curd, ghee, and nourishing food and dainties is taste renunciation penance. (26)
ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा ।
उगा जहा धरिज्जन्ति, कायकिलेसं तमाहियं ॥२७॥
आत्मा के लिए सुखकारी वीरासन आदि उग्र आसनों को धारण करने को - अभ्यास करने को काय क्लेश तप कहा गया है ॥२७॥
Beneficial for soul to practise different postures, like-Virāsana etc., is bodymortification penance. (27)
एगन्तमणावाए, इत्थी पसुविवज्जिए । सयणासणसेवणया, विवित्तसयणासणं ॥२८॥
एकान्त, अनापात (लोगों के आवागमन से रहित ) और स्त्री तथा पशु (नपुंसक भी) आदि से विवर्जित ( रहित ) शयन एवं आसन का आसेवन ( ग्रहण) करना, विविक्त शयन आसन ( प्रतिसंलीनता) तप है ॥२८॥ Using lonely, unfrequented by men, women, eunuch and cattles-beds and lodgings is pratisamlinatā or separate lodgings, beds penance. (28)
एसो बाहिरंग तवो, समासेण वियाहिओ । अब्भिन्तरं तवं एत्तो, वच्छामि अणुपुव्वसो ॥२९॥ संक्षेप में बहिरंग (बाह्य) तपों को कहा गया है।
अब क्रमशः आभ्यन्तर तपों को कहूँगा ॥२९॥
Briefly, these are external penances.
Now I shall describe internal penances in due order. (29)
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पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं च विउस्सग्गो, एसो अब्भिन्तरो तवो ॥३०॥
(१) प्रायश्चित्त ( २ ) विनय ( ३ ) वैयावृत्य ( ४ ) स्वाध्याय (५) ध्यान और (६) व्युत्सर्ग- ये छह आभ्यन्तर तप हैं ॥ ३० ॥
(1) Expiation (2) politeness ( 3 ) servitude to others (4) study (5) meditation and (6) abandoning affection to body etc., - these six are internal penances. (30)
आलोयणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं ।
भिक्खू वहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ॥
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