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________________ तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र एकोनत्रिंश अध्ययन [३५८ ४३. वेयावच्चे ५९. नाणसंपन्नया ४४. सव्वगुणसंपण्णया ६०. सणसंपन्नया ४५. वीयरागया ६१. चरित्तसंपन्नया ४६. खन्ती ६२. सोइन्दियनिग्गहे ४७. मुत्ती ६३. चक्खिन्दियनिग्गहे ४८. अज्जवे ६४. धाणिन्दियनिग्गहे ४९. मद्दवे ६५. जिभिन्दियनिग्गहे ५०. भावसच्चे ६६. फासिन्दियनिग्गहे ५१. करणसच्चे ६७. कोहविजए ५२. जोगसच्चे ६८. माणविजए ५३. मणगुत्तया ६९. मायाविजए ५४. वयगुत्तया ७०. लोहविजए ५५. कायगुत्तया ७१. पेज्जदोसमिच्छादसणविजए ५६. मणसमाधारणया ७२. सेलेसी ५७. वयसमाधारणया ७३. अकम्मया ५८. कायसमाधारणया सूत्र १-हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है, उन भगवान ने इस प्रकार कहा है इसी जिन प्रवचन में काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान महावीर ने सम्यक्त्व पराक्रम नामक अध्ययन का प्रतिपादन किया है, जिसका सम्यक् श्रद्धान करके, प्रतीति करके, रुचि करके, स्पर्श करके, पालन करके, पार करके, कीर्तन करके, शुद्ध करके, आराधना करके, गुरु-आज्ञा के अनुसार अनुपालन करके बहुत से जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं और सम्पूर्ण दुःखों का अन्त करते हैं। उसका यह अर्थ है जो इस प्रकार कहा जाता है। जैसे कि१. संवेग १०. वन्दना २. निर्वेद ११. प्रतिक्रमण ३. धर्मश्रद्धा १२. कायोत्सर्ग ४. गुरु तथा साधर्मिक की शुश्रूषा १३. प्रत्याख्यान ५. आलोचना १४. स्तव-स्तुति मंगल ६. निन्दा (निन्दना) १५. काल प्रतिलेखना ७. गर्दा (गर्हणा) १६. प्रायश्चित्त ८. सामायिक १७. क्षामणा-क्षमापना ९. चतुर्विंशति स्तव १८. स्वाध्याय Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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