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________________ ३] प्रथम अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र प्रथम अध्ययन : विनय श्रुत पूर्वालोक विनयश्रुत, यह प्रथम अध्ययन है। प्राकृत भाषा के शब्द 'सुयं' के संस्कृत भाषा में दो रूपान्तर होते हैं-सूत्र और श्रुत। प्रस्तुत अध्ययन के लिए ये दोनों ही सार्थक हैं। इसमें विनय के सूत्र भी दिये गये हैं और गुरु-शिष्य परम्परा से श्रुत का प्रवाह तो परम्परित है ही । विनय, आचार-श्रमणाचार की नींव है, धर्म का मूल है, मोक्षप्राप्ति का सोपान है। अहंकार का विसर्जन विनय है। जो व्यक्ति अपने अहंकार का त्याग कर देता है, वही नमता है, झुकता है, गुरु-वचनों को श्रद्धापूर्वक सुनकर स्वीकार करता है और उनकी आज्ञा का पालन करता है। ऐसा व्यक्ति अथवा शिष्य विनीत कहलाता है और इसके विपरीत आचरण वाला व्यक्ति अथवा शिष्य अविनीत । प्रस्तुत अध्ययन में विनीत और अविनीत की स्पष्ट परिभाषा न देकर उनके लक्षण बताये गये हैं, उनकी वृत्ति, प्रवृत्ति, कार्य शैली और व्यवहार का विशद वर्णन किया गया है। मनीषियों ने विभिन्न अपेक्षाओं से विनय के भेद-प्रभेद किये हैं। उदाहरणार्थ- दो भेद (१) लौकिक विनय और (२) लोकोत्तर विनय । चार भेद (१-३) ज्ञान-दर्शन - चारित्र विनय ( ४ ) लोकोपचार विनय । सात भेद - ( १ ) ज्ञानविनय, (२) दर्शनविनय, (3) चारित्रविनय, (४) मन विनय, (५) वचन विनय (६) काय विनय, (७) लोकोपचार विनय । वस्तुतः विनय जीवन के सम्पूर्ण व्यवहार में परिलक्षित है। अनुशासन, आत्म-संयम, सदाचार, शील, सद्व्यवहार, मानसिक- वाचिक - कायिक नम्रता, गुरु की आज्ञा का पालन, उनके इंगित आदि को समझना, उनकी सेवा शुश्रूषा, अनाशातना, अप्रतिकूलता, कठोर अनुशासन को भी अपने लिए हितकर समझना, तथा समय का महत्व समझकर प्रत्येक कार्य नियत समय पर करना - सभी विनय के ही विविध रूप हैं। Jain Education International साथ ही गुरु के समक्ष किस प्रकार उठना-बैठना, गमनागमन करना, प्रश्न पूछना, शैया संस्तारक आदि प्रत्येक गतिविधि के संबंध में सम्पूर्ण सूचन प्रस्तुत अध्ययन में दिया गया है। तथा यह बताया गया है कि विनीत शिष्य ही गुरु से आगमों का गंभीर ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अन्त में कहा गया है कि जिस प्रकार जीवों के लिए पृथ्वी आधार रूप है उसी प्रकार धार्मिक जनों के लिए गुरु से ज्ञान प्राप्त विनीत शिष्य भी आधार रूप होता है। उसे अनेक लब्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। इस प्रकार इस अध्ययन में विविध प्रकार से विनय के सम्पूर्ण रूप को वर्णित किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में ४८ गाथाएँ हैं। 卐 For Private & Personal Use Only www.jaineliterary org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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