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३४७] अष्टाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
वर्तना (परिवर्तन) काल द्रव्य का लक्षण है। उपयोग (चेतना) जीव द्रव्य का लक्षण है जो ज्ञान (विशेष अवबोध), दर्शन (सामान्य अवबोध) तथा सुख और दुःख की अनुभूति से पहचाना जाता है ॥१०॥
The characterstic of Time is change (duration) and that of Soul is consciousness which is recognised by cognition, conation and feelings of pleasure and pain. (10)
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा ।
वीरियं उवओगो य, एवं जीवस्स लक्खणं ॥११॥ . ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग-ये जीव के लक्षण हैं ॥११॥
Knowledge, faith, conduct, penance, energy and consciousness are the characterstics of soul. (11)
सद्दऽन्धयार-उज्जोओ, पहा छायाऽऽतवे इ वा ।
वण्ण-रस-गन्ध-फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥१२॥ शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप आदि तथा वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श-ये पुद्गल के लक्षण हैं ॥१२॥
The characterstics of Matter are-sound, darkness, lustre (of jewels etc.,) light, shade, heat etc., and colour, taste, smell and touch. (12)
एगतं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य ।
संजोगा य विभागा य, पज्जवाणं तु लक्खणं ॥१३॥ एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान-आकार, संयोग और विभाग-ये सब पर्यायों के लक्षण हैं ॥१३॥
The characterstics of modifications are-unitedness, separatedness, number, form, conjunction and disjunctions. (13)
जीवाजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावासवो तहा ।
संवरो निज्जरा मोक्खो, सन्तेए तहिया नव ॥१४॥ जीव, अजीव, बन्ध (जीव और कर्मों का एकक्षेत्रावगाह), पुण्य (शुभत्व), पाप (अशुभत्व), आम्रव (शुभाशुभ कर्मबन्ध के हेतु राग-द्वेष आदि), संवर (आस्रवनिरोध), निर्जरा (पूर्वबद्ध कर्मों का एकदेश क्षय) और मोक्ष (कर्मों का समूर्ण क्षय)-ये नौ तत्त्व हैं ॥१४॥
Soul, non-soul, bondage, merit, demerit, influx of karmas (attachment-detachment-the causes of bondage of meritorious and sinful karmas) check of karma-influx, annihilation (partial shedding off formerly accumulated karmas) and salvation (fully exhaustion of karmas)-these are nine elements. (14)
तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं ।
भावेणं सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥१५॥ सम्यग्दर्शन ___ इन तथ्यभूत भावों के सद्भाव (अस्तित्व) के उपदेश-निरूपण में जो भावपूर्वक श्रद्धा होती है, उसे सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन कहा गया है |॥१५॥
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