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३४५] अष्टाविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अट्ठावीस इमं अज्झयणं : मोक्खमग्गगई अष्टाविंश अध्ययन : मोक्ष-मार्ग-गति
मोक्खमग्गगई तच्चं, सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं, नाण-दंसणलक्खणं ॥१॥
ज्ञान आदि चार कारणों से संयुक्त, ज्ञान-दर्शन लक्षण-स्वरूप, जिनभाषित तथ्यपरक यथार्थ सम्यक् मोक्ष मार्ग की गति को सुनो ॥१॥
United with knowledge etc., four causes, with the conception of knowledge and faith, preseribed by Jinas, listen to me the true method of performance leading to the salvation. (1) नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा । एस मग्गो ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ॥२॥
ज्ञान - दर्शन - चारित्र और तप ( ये चारों मिलकर) मोक्ष मार्ग हैं, ऐसा केवलज्ञानी - केवलदर्शी सर्वज्ञ जिनेन्द्र देवों ने बताया है ॥२॥
The process to attain liberation are the four causes-knowledge-faith-conduct-penance united, thus has been said by the reverends possessing supreme knowledge and perception. (2)
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा ।
एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं ॥३॥
ज्ञान-दर्शन तथा इसी प्रकार चारित्र और तप - इस कारण चतुष्टय युक्त मोक्ष मार्ग को प्राप्त करने वाले जीव सद्गति को जाते हैं - प्राप्त करते हैं ॥३॥
By practising all the four causes of salvation-knowledge-faith-conduct-penance, the soul attains best existence. ( 4 )
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तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिणिबोहियं । ओहीनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं ॥४॥
सम्यग्ज्ञान
उन चारों में ज्ञान पाँच प्रकार है - ( १ ) श्रुतज्ञान (२) आभिनिबोधिक (भति) ज्ञान, (३) अवधिज्ञान (४) मन:ज्ञान (मनः पर्यवज्ञान) और (५) केवलज्ञान ॥४॥
Right knowledge
Among all these four, the knowledge is of five kinds - ( 1 ) Sruta knowledge (it is derived from sacred scriptures) (2) ābhinibodhika knowledge (it takes place from mind and senses ) (3) clairvoyance (4) Manah-paryava knowledge (capable to know directly without any external support the modifications of other's mind may he be billion miles afar) and (5) supreme knowledge-omniscience. (4)
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