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३०१] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विशेष स्पष्टीकरण
गाथा १२ - चातुर्याम जैन परम्परा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहरूप पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया था। दूसरे अजित जिन से लेकर तेईसवें पार्श्व जिन तक चातुर्याम धर्म का उपदेश रहा। इसमें ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को "बहिद्धादाणाओ वेरमणं" - बहिस्ताद् आदानं विरमणं ( बाह्य वस्तुओं के ग्रहण का त्याग) में समाहित कर दिया गया था।
प्रस्तुत अध्ययन में पार्श्वनाथ परम्परा के चार महाव्रतों को "याम" शब्द से और वर्धमान महावीर परम्परा के पाँच महाव्रतों को "शिक्षा" शब्द से सूचित किया है।
भगवान पार्श्वनाथ ने मैथुन को परिग्रह के अन्तर्गत माना था। स्त्री को परिगृहीत किये बिना मैथुन नहीं होगा। इसीलिये पत्नी के लिये "परिग्रह" शब्द भी प्रचलित रहा है।
"
गाया १३ " अचेल के दो अर्थ हैं बिल्कुल ही वस्त्र न रखना, अथवा अल्प मूल्य वाले साधारण श्वेत वस्त्र रखना । "अ" का अभाव अर्थ भी है, और अल्प भी (बृ. वृ.)
Salient Elucidations
Gatha 12 Caturyama-According to Jain tradition, first tirtharhkara Bhgawana Rsbhadeva precepted five great vows (1) Non-violence (2) Truth (3) Non-stealing (4) Celibacy (5) Nonpossession. From second, Ajita Jina to twentythird Parsva Jina four vows were taught. In this preception celibacy and non-possession both were amalgamated in one i. e., bahiddhādāņão veramaṇarh. (renouncement of accepting the outward things)
In this chapter the four great vows of Parsvanitha's tradition named as Yama and five great vows of Bhagawana Mahavira's tradition given the name instruction.
Bhagawana Parávanátha gave the place to cohabitation among possession. Because sexual intercourse cannot be done without accepting woman. Due to this, the word possession prevailed for
wife also.
Gatha 13-There are two interpretations of the word Acela' -(1) totally without clothes and (2) a few and ordinary clothes. The word '37 bears both the meanings-(1) Totally absence and (2) a few. (V. V.)
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