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४३] विंशति अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
फिर एक रात मैंने स्वयं ही संकल्प किया-यदि मेरी अक्षिवेदना मिट जायेगी तो मैं श्रमण बन जाऊँगा। स रात मुझे चैन से नींद आई, सुबह उठा तो वेदना भी मिट चुकी थी। मैं श्रमण बन गया।
तदुपरान्त अनाथी मुनि ने कहा-केवल श्रमण वेश धारण करने से ही सनाथता नहीं आती। जो ग-द्वेष, काम-भोगों की भावनाओं से ग्रसित होते हैं, वे श्रमण भी अनाथ ही होते हैं। सनाथ तो केवल शुद्धाचारी श्रमण ही होते हैं। राजा श्रेणिक ने सनाथ-अनाथ का यथार्थ अभिप्राय समझा और सम्यक्त्व ग्रहण किया।
सम्पूर्ण अध्ययन की भाषा ओजपूर्ण, रोचक और प्रेरक है। सूक्तियों और उपमाओं की प्रचुरता है। यह नध्ययन किसी भी व्यक्ति को अन्तर्मुखी और उसकी आत्मा को जागृत करने में सफल है।
प्रस्तुत अध्ययन में ६० गाथाएँ हैं।
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