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________________ २१९] एकोनविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र उन्नीसवाँ अध्ययन : मृगापुत्रीय पूर्वालोक ___ प्रस्तुत अध्ययन का नाम सुग्रीव नगर के राजा बलभद्र और उनकी रानी मृगावती के सुपुत्र युवराज मृगापुत्र के नाम पर निर्धारित किया गया है। युवराज का नाम बलश्री था किन्तु मृगापुत्र नाम से वह अधिक विश्रुत था। पिछले अध्ययनों से इस अध्ययन में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें नरक और नरक के दुःखों का अनुभूत वर्णन हुआ है। एक बार युवराज मृगापुत्र अपने महल के गवाक्ष में बैठा नगर की चहल-पहल देख रहा था। उसकी दृष्टि में, एक मुनि आते हैं। मुनि के तेजस्वी ललाट और तपस्या से कृश दुर्बल शरीर को देखकर उसका चिन्तन गहरा होता है, उसे जातिस्मरण ज्ञान (पिछले जन्मों का ज्ञान) हो जाता है कि पिछले जन्म में मैं भी इसी प्रकार एक श्रमण था। बस, पूर्वजन्म की स्मृति के कारण उसका मन संसार से विरक्त हो जाता है। माता-पिता से दीक्षा की अनुमति माँगता है। माता-पिता के यह कहने पर कि श्रमणाचार का पालन करना तलवार की धार पर चलना है। उत्तर में मृगापुत्र बताता है कि मेरी आत्मा ने नरकों में ऐसे कष्ट भोगे हैं, जिनका शतांश भी इस मानव लोक में नहीं है। ___ और फिर वह नरक के दुःखों का वर्णन करता है। यह वर्णन इतना सजीव, रोमांचकर और भयप्रद है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। नारकीय यातनाओं को पढ़कर शरीर में सिहरन भर जाती है, हृदय काँपने लगता है। (चित्र देखें) माता-पिता अपने पुत्र को दीक्षित होने से रोकने का अन्तिम प्रयास करते हैं कि-श्रमणत्व धारण करने के पश्चात् यदि कोई रोग हो जाता है तो उसकी चिकित्सा नहीं कराई जाती। मृगापुत्र इसका यथातथ्य उत्तर देता है कि वन में मृगों के रोगी होने पर उनकी चिकित्सा भी कोई नहीं कराता, वे स्वयं ही स्वस्थ हो जाते हैं। मैं भी मृगचर्या करूँगा। पुत्र के दृढ़ संकल्प और तीव्र वैराग्य को जानकर माता-पिता ने दीक्षा की अनुमति दे दी। दीक्षित होकर मुगापुत्र ने उत्कृष्ट तपःसाधना करके मुक्ति प्राप्त की। इस अध्ययन में ९९ गाथाएँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.Jain library.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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