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an, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोदश अध्ययन
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पंचालराया वि य बम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं ।
अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥३४॥ पांचालदेश का स्वामी चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त चित्र मुनि के वचनों का पालन न कर सका। अतः वह अनुत्तर उत्कृष्ट काम-भोगों को भोगकर अनुत्तर-निम्नतम-सातवें नरक में उत्पन्न हुआ ॥३४॥
The ruler of Pārcāla country, great monarch Brahmadutta could not do according, to the counsel of monk Citra. So enjoying the extreme mundane pleasure he born in the seventh hell, which is the lowest. (34)
चित्तो वि कामेहिं विरत्तकामो, उदग्गचारित्त-तवो महेसी । अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥३५॥
-त्ति बेमि काम-भोगों से विरक्त, उग्र चारित्री एवं तपस्वी महर्षि चित्र मुनि अनुत्तर-उत्कृष्ट संयम का पालन करके अनुत्तर-उत्कृष्ट-सिद्धगति को प्राप्त हुए ॥३५॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Disinclined to the worldly pleasures, rigorous penancer and observer of pure monk conduct, practising the highest self-control Citra monk obtained the emancipation. (35)
-Such I Speak
विशेष स्पष्टीकरण गाथा १-निदान-तपश्चरण आदि के बदले में भोग प्राप्ति के लिये किया जाने वाला दृढ़ संकल्प निदान है। यह आर्तध्यान का ही एक भेद है।
गाथा ६-चूर्णि आदि ग्रन्थों के अनुसार गंगा प्रतिवर्ष अपना मार्ग बदलती रहती है। जो पहले का मार्ग छोड़ देती है, उस छोडे हुए मार्ग की भूमि को मृतगंगा कहते हैं।
Salient Elucidations Gatha 1-Firm volition (FGT-It is a resolve to get worldly pleasures in exchange of penances etc. It is a kind of arta-dhyāna.
Gäthä 6-According to the scriptures Cūrņi etc. the river Ganga is said to change its course every year. The previous course, which it relinquishes, the ground of that course is called Mrtaganga.
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