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१०९] दशम् अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
धन तथा पत्नी को त्यागकर तुम अनगार बने हो, प्रव्रजित हुए हो । उन वमन किये हुए भोगों की पुनः इच्छा मत करो। हे गौतम! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो ॥ २९ ॥
Renouncing wealth and woman you become a houseless monk, do not desire those vomitted pleasures (renounced rejoincings). O Gautama ! be not careless even for a moment. (29)
चेव
धणोहसंचयं ।
अवउज्झिय मित्तबन्धवं, विउलं मातं बिइयं गवेसए, समयं गोयम
मा पमायए ॥ ३० ॥
मित्र, बान्धव, विपुल धन आदि के संचय का परित्याग कर, पुनः दूसरी बार इन मित्रादि की इच्छा मत करो और उनकी तलाश भी मत करो। हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥ ३० ॥
You have given up your friends, kins, relations and amassed wealth etc. Now again do not desire those friends etc., and not even hanker about them. Gautama ! be not careless even for awhile. (30)
न हु जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥३१॥
आज जिन नहीं दीख रहे हैं और मार्गदर्शकों के भी भिन्न-भिन्न अनेक प्रकार के मत हैं। (भविष्य में साधकों के समक्ष यह कठिन स्थिति उपस्थित होगी । ) किन्तु आज - अभी मेरी उपस्थिति में तुम्हें संसार से पार ले जाने में सक्षम न्यायपूर्ण पथ प्राप्त है। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥ ३१ ॥
Today there a no Jinas (victors of attachment and aversion-destroyer of four vitiating karmas) and the are many dogmas of creed-pioneers-in future this difficult position will arise before the adepts) but today-now, in my presence you have acquired the right path, competent for crossing this worldly ocean. So Gautama! have no negligence even for awhile. (31)
अवसोहिय कण्टगापहं, ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३२ ॥
कंटक भरे मार्ग को छोड़कर तुम विशाल महापथ- राजमार्ग पर आ गये हो, दृढ़ निश्चय करके इसी पथ पर बढ़े चलो। हे गौतम! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो ॥ ३२ ॥
Leaving the thorny path you are now walking on the broad highway. Be firm determined and go ahead on this very path. Gautama ! be not regligent for awhile. ( 32 )
अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेवगाहिया ।
पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३३ ॥
शक्तिहीन भारवाहक के समान तुम विषम मार्ग पर मंत चले जाना; क्योंकि विषम मार्ग पर चलने वाले भारवाहक और साधक को बाद में पछताना पड़ता है। अतः हे गौतम ! निमेष मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥३३॥
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Like a weak burden-bearer do not go on the uneven path; for the adept and burdenbearer, who take uneven path, both lament. Therefore Gautama ! be not uncautious even for awhile. (33)
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