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________________ १०१] दशम अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र - | दशम अध्ययन : दुमपत्रक पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम दुमपत्तयं (संस्कृत-द्रुमपत्रक) इसकी प्रथम गाथा के प्रथम शब्द के आधार पर रखा गया है। इससे पूर्व नौवें अध्ययन में श्रमण संस्कृति द्वारा अनुमोदित आध्यात्मिक स्वर मुखर हुआ था। इस दसवें अध्ययन में साधक को जागरूक रहने और जीवन के प्रत्येक क्षण के सदुपयोग की प्रेरणा दी गई है। ___ वृक्ष के पके हुए श्वेत-पीत पत्र को आधार बनाकर साधकों को जीवन की नश्वरता का बोध देकर अप्रमाद की प्रेरणा दी है। यद्यपि भगवान महावीर प्रत्यक्ष रूप से गौतम गणधर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे गौतम ! एक क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो; किन्तु यह उद्बोधन श्रमण अथवा श्रावक-सभी साधकों के लिए है। मानव जीवन की नश्वरता के प्रतिपादन के साथ पाँचों एकेन्टिय स्थावरकायों दीन्दिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय वसकाय के जीवों की कायस्थिति और आयुस्थिति भी बताई गई है। पंचेन्द्रिय जीवों की आयु का भी वर्णन है। __इस वर्णन का अभिप्राय यह है कि यदि वर्तमान मानव-जीवन में मुक्ति प्राप्त नहीं की तो अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करना पड़ेगा। मनुष्य गति में भी अनेक विघ्न-बाधाओं, रोगों, आतंकों का वर्णन करके कहा गया है कि शरीर दिन-दिन क्षीण हो रहा है अतः प्रमाद को जीवन में स्थान मत दो। शीघ्रातिशीघ्र अपने लक्ष्य मुक्ति को प्राप्त अप्रमाद का प्रबल प्रेरक यह एक अध्ययन ही वैराग्य ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठापित हो सकता है। - इस अध्ययन की भाषा सुललित और हृदयहारिणी है। शैली की प्रवाहशीलता में प्रवहण करता हुआ साधक (पाठक) वैराग्य भावों में सराबोर हो जाता है। नियुक्ति, चूर्णि आदि के अनुसार इस अध्ययन की पृष्ठभूमि में गौतम गणधर की खिन्नता बताई गई है। उस खिन्नता का कारण कई घटनाएँ थीं। सभी घटनाएँ 'उत्तराध्ययन महिमा' में संकलित हैं। वहाँ देखें। गौतम की खिन्नता का प्रमुख कारण उन्हें केवलज्ञान की उत्पत्ति न होना था जबकि उनके बाद प्रव्रजित हुए अनेक साधु केवली बन चुके थे। गौतम को केवलज्ञान न होने का प्रमुख कारण उनका भगवान के प्रति धर्म-स्नेह था। इसीलिए भगवान ने इस अध्ययन की २८वीं गाथा में गौतम को स्नेह बंधन को तोड़ने की | पुरजोर प्रेरणा दी। इस संपूर्ण अध्ययन में अप्रमाद, सतत जागरूकता, निर्लेपता, चारित्र और ज्ञान आराधना का स्वर यमान है। साधक की निर्दोष और सतत साधना के लिए यह अध्ययन महत्वपूर्ण प्रेरणा प्रदान करता है। प्रस्तुत अध्ययन में ३७ गाथाएँ हैं। 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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