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८९] नवम् अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जिस समय नमि राजर्षि अभिनिष्क्रमण करके प्रव्रजित हो रहे थे उस समय मिथिला नगरी में सर्वत्र बहुत कोलाहल हो रहा था ॥५॥
When royal sage Nami was moving out to be consecrated, at that occasion arose a tremendous roar in Mithila city. (5)
अब्भुट्ठियं रायरिसिं, पव्वज्जा-ठाणमुत्तमं ।
सक्को माहणरूवेण, इमं वयणमब्बवी-॥६॥ उत्तम प्रव्रज्या स्थान (साधु पद) के लिए उद्यत नमि राजर्षि के पास शक्रेन्द्र ब्राह्मण का रूप धारण करके आया और उसने नमि राजर्षि से इस प्रकार के वचन कहे-॥६॥
Determined for attaining the best stage of consecration (monkhood) the ruler of gods of tirst heavenly abode-Sakra (975 ) in the guise of a brāhmaṇa came and said to him the following words-(6)
'किण्णु भो ! अज्ज मिहिलाए, कोलाहलग - संकुला ।
सुव्वन्ति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य?'॥७॥ हे राजर्षि ! आज मिथिला नगरी के महलों में, घरों में, कोलाहलपूर्ण हृदय विदारक शब्द क्यों सुनने में आ रहे हैं ?॥७॥
Royal sage! Why today Mithilā city is full of uproar. Dreadful bewailments are heard from palaces and houses. (7)
एयमठें निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ ।
तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी-॥८॥ देवेन्द्र के इस प्रश्न को सुनकर तथा हेतु और कारण से प्रेरित होकर नमि राजर्षि ने इन्द्र से इस प्रकार कहा-1॥८॥
Hearing the words spoken by king of gods, the royal sage Nami, inspired by reason and cause spoke thus to him-(8)
'मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे ।
पत्त-पुप्फ-फलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥९॥ मिथिला नगरी में शीतल छाया वाला, मनोरम, पत्र-पुष्प-फलों से युक्त, बहुतों (बहुत पक्षियों) के लिए उपकारक एक चैत्य वृक्ष था-॥९॥ | In Mithila there was a sacred tree (चैत्यवृक्ष) pleasant, full of leaves-flowers-fruits, and |shed a cool shadow, a shelter and beneficial to many (birds)-(9)
वाएण . हीरमाणंमि, चेइयमि मणोरमे ।
दुहिया असरणा अत्ता, एए कन्दन्ति भो ! खगा' ॥१०॥ । प्रचण्ड वायु के देग से वह मनोरम चैत्य वृक्ष उखड़ गया। हे विप्र ! उस वृक्ष के उखड़ जाने से दुःखी और अशरण ये पक्षी आक्रन्दन कर रहे हैं ॥१०॥
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