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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र मुद्राएँ ? यह भी कम हैं ! इस तरह उसकी इच्छा बढ़ती गई । लाख करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ भी कम मालूम हुईं। भवन, और राज सत्ता तक उसकी तृष्णा दौड़ने लगी । ७७] अष्टम अध्ययन तभी उसके चिन्तन को गहरा झटका लगा दो माशा स्वर्ण से पूर्ण होने वाला कार्य करोड़ स्वर्णमुद्राओं से भी नहीं हो रहा है। यह इच्छाओं का गड्ढा कितना दुष्पूर है ? बस कपिल का मन विरक्त हो गया। राजा के पास आया और बोला- हे राजन् ! मुझे किसी भी वस्तु की इच्छा नहीं है। जो मुझे पाना था, वह पा चुका। इतना कहकर कपिल राजसभा से निकल गया और निर्ग्रन्थ श्रमण बन गया। छह माह तक छद्मस्थ रहे और फिर केवली हो गये। एक बार कपिल केवली श्रावस्ती और राजगृही के बीच फैले हुए १८ योजन के महारण्य में विहार कर रहे थे। ५०० चोरों ने उन्हें घेर लिया। तब कपिल केवली ने चोरों को भावपूर्ण उद्बोधन दिया। चोरों को दिया हुआ वह उद्बोधन ही इस अध्ययन में संकलित है। प्रस्तुत अध्ययन के वक्ता कपिल केवली हैं। इन्हीं के नाम पर इसका नामकरण काविलीयं हुआ है। इससे पूर्व सातवें अध्ययन में साधक को विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा राग-द्वेष, काम-भोग आदि से वि करने का प्रयास किया गया था। इस अध्ययन में लाभ और लोभ का दुष्पूर चक्र दिखाकर धन के प्रति साधक की आसक्ति को समाप्त करने का प्रयास है। काम और लोभ संसार से मुक्ति प्राप्त करने में सबसे बड़े बाधक तत्व हैं। प्रस्तुत अध्ययन में पूर्व आसक्ति, ग्रन्थ (बाह्य आभ्यन्तर परिग्रह) रस लोलुपता, लक्षण आदि शास्त्रों के प्रयोग, स्त्री आसक्ति के त्याग तथा संसार की क्षणिकता का बहुत ही सजीव और प्रेरक विवेचन है। हिंसा आदि पापों का वर्णन है । दुर्गति से बचने के उपाय भी बताये गये हैं-संयम, विवेक और विरक्ति। यह भी कहा गया है कि भोगों से उपरति और परिग्रह का सर्वथा त्याग ही संसार से मुक्ति प्राप्ति में सहायक होता है। इस अध्ययन का सन्देश है-काम-भोगों को देखकर भी साधक उन्हें अनदेखा करता रहे। उपेक्षा करता रहे । यह अध्ययन गेयछन्द ध्रुवक में लिपिबद्ध है। प्रस्तुत अध्ययन में २० गाथाएँ हैं । Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only www.janelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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