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________________ (6) वैदिक परम्परा में जो स्थान 'गीता' का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान 'धम्मपद' का है, जैन परम्परा में वही स्थान उत्तराध्ययन सूत्र को प्राप्त है। उत्तराध्ययन का स्वाध्याय जीवन अभ्युदय का सोपान है। प्रस्तुत संस्करण उत्तराध्ययन सूत्र के अब तक अनेक सुन्दर / सुन्दरतम संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें मेरा प्रयत्न उनसे कोई श्रेष्ठ हो, ऐसा मैं नहीं कहता, क्योंकि पूर्वाचार्यों व मनीषी विद्वानों के समक्ष मैं स्वयं को अल्पज्ञ और अल्पबुद्धि मानता हूँ। किन्तु उत्तराध्ययन के रूपक - दृष्टान्त एवं कुछ विशेष तथ्यों को चित्रमय प्रस्तुत करने का हमारा यह प्रयत्न अवश्य ही नवीन और सर्वसाधारण के लिए उपयोगी होगा यह विश्वास करता हूँ। मैं देखता हूँ कि अधिकतर लेखक अपनी कृति को विद्वद्भोग्य बनाने का तो प्रयत्न करते हैं, परन्तु सर्व साधारण की चिन्ता कम ही करते हैं। सर्व-साधारण व लोकोपयोगी होने से ग्रंथ का स्तर गिर नहीं जाता, या उसकी महत्ता कम नहीं होती, अपितु मेरे विचार में तो जो पुस्तक या ग्रंथ सर्व साधारण के लिए उपयोगी होता है, वह ज्यादा सफल और महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि विद्वभोग्य महाग्रंथ केवल अलमारियों की शोभा बढ़ाते रहते हैं। अस्तु " I पूज्य प्रवर्त्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के दीक्षा हीरक जयन्ती वर्ष पर हम सब भक्त शिष्यों की यह अभिनव भेंट उनके कर-कमलों में समर्पित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि इस शुभ प्रसंग पर हमने एक नई और सर्वजन उपयोगी भेंट प्रस्तुत की है। इस भगीरथ कार्य सम्पादन में उपप्रवर्तिनी साध्वीरत्न स्व. श्री शशीकान्ता जी म. की सुशिष्या उपप्रवर्तिनी विदुषी महासती सरिता जी एम. ए., पी-एच. डी. तथा उपप्रवर्तिनी श्री रविरश्मि जी म. का हार्दिक सहयोग मिला है। जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीयुत श्रीचन्द सुराना ने चित्र तैयार कराने से लेकर सभी उत्तरदायित्वों का बड़े स्नेह एवं आत्मीय भाव पूर्वक निर्वाह किया है तथा अनेक गुरुभक्त उदारमना सज्जनों ने अर्थ सहयोग प्रदान कर प्रकाशन कार्य को सम्पन्न करवाया है। मैं उन सभी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। और विश्वास करता हूँ कि चित्रमय आगम प्रकाशन का हमारा यह महनीय प्रयत्न आगम सम्पादन प्रकाशन के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित करेगा तथा आगे व्यापक रूप लेता जायेगा। इसी विश्वास के साथ... ............. जैन स्थानक, त्रीनगर, दिल्ली ६ अक्टूबर (विजयादशमी) Jain Education International For Private & Personal Use Only - अमर मुनि www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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