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________________ फफफफफफफफफ 卐 फ अग्गसिरा, सामलिबोंड - घण- णिचिअच्छोडिअ छत्तागारुत्तमंगदेसा, मिउविसय-पसत्थसुहुमलक्खण- सुगंध - सुंदर भुअमो अग- भिंग नीलकज्जल - पहट्ट - भमरगण - णिद्धिणिकुरंबणिचिअ - पयाहिणावत्तमुद्धसिरया ) पासादीया, ( दरिसणिज्जा, अभिरूवा) पडिरूवा । २८. [प्र.१] उस समय भरत क्षेत्र में मनुष्यों का आकार / स्वरूप ( देह रचना ) कैसा था ? [उ. ] गौतम ! उस समय वहाँ के मनुष्य बड़े सुन्दर, दर्शनीय, अभिरूप एवं प्रतिरूप थे। उनके चरण - पैर सुप्रतिष्ठित - सुन्दर रचनायुक्त तथा कछुए की तरह उठे हुए होने से मनोज्ञ प्रतीत होते थे। [ उनकी पगलियाँ लाल कमल के पत्ते के समान मृदुल, सुकुमार और कोमल थीं। उनके चरण पर्वत, 5 नगर, मगर, सागर एवं चक्ररूप उत्तम मंगलचिह्नों से अंकित थे। उनके पैरों की अंगुलियाँ क्रमशः आनुपातिक रूप में छोटी-बड़ी एवं सुन्दर रूप में एक-दूसरी से सटी हुई थीं। पैरों के नख उन्नत, पतले, ताँबे की तरह कुछ-कुछ लाल तथा स्निग्ध-चिकने थे। उनके टखने सुन्दर, सुगठित एवं माँसलता के कारण बाहर नहीं निकले हुए थे। उनकी पिंडलियाँ हरिणी की पिंडलियों, कुरुविन्द घास तथा कते सूत की गेडी की तरह क्रमशः उतार सहित गोल थीं। उनके घुटने डिब्बे के ढक्कन की तरह निगूढ़ थे। हाथी फकी सूँड़ की तरह जंघाएँ सुगठित थीं । श्रेष्ठ हाथी के तुल्य पराक्रम, गम्भीरता और मस्ती लिए उनकी चाल 1 卐 दाडिमपुप्फ- पगास - तवणिज्जसरिस - णिम्मल - सुजाय - केसंतभूमी, 5 卐 5 थी । स्वस्थ, उत्तम घोड़े तथा उत्तम सिंह की कमर के समान उनकी कमर गोल घेराव लिए थी । उत्तम फ घोड़े के सुनिष्पन्न गुप्तांग की तरह उनके गुह्य भाग थे। उत्तम जाति के घोड़े की तरह उनका शरीर मलमूत्र विसर्जन की अपेक्षा से निर्लेप था । उनकी देह के मध्य भाग त्रिकाष्ठिका, मूसल दर्पण के हत्थे के मध्य भाग के समान, तलवार की श्रेष्ठ स्वर्णमय मूठ के समान तथा उत्तम वज्र के समान गोल और पतले थे। उनके कुक्षिप्रदेश - उदर के नीचे के दोनों पार्श्व मत्स्य और पक्षी के समान सुनिष्पन्न - सुन्दर रूप में 卐 5 रचित तथा पीन परिपुष्ट थे। उनके उदर मत्स्य जैसे थे। उनके आन्त्रसमूह - आँतें शुचि - स्वच्छ-निर्मल - थीं। उनकी नाभियाँ कमल की ज्यों गम्भीर, विकट- गूढ़ गंगा की भँवर की तरह गोल, दाहिनी ओर चक्कर काटती हुई तरंगों की तरह घुमावदार, सुन्दर, चमकते हुए सूर्य की किरणों से विकसित होते 5 कमल की तरह खिली हुई थीं । फ्र फ्र उनके वक्षस्थल और उदर पर सीधे, समान, एक-दूसरे से मिले हुए, उत्कृष्ट, हल्के, काले, चिकने, उत्तम लावण्यमय, सुकुमार, कोमल तथा रमणीय बालों की पंक्तियाँ थीं। उनकी देह के पसवाड़े नीचे की 卐 卐 ओर क्रमशः सँकड़े, देह के प्रमाण के अनुरूप, सुन्दर, सुनिष्पन्न तथा समुचित परिमाण में माँसलता लिए हुए थे, मनोहर थे। उन मनुष्यों के शरीर स्वर्ण के समान कांतिमान, निर्मल, सुन्दर, रोग-दोष - वर्जित तथा फ्र माँसलतामय थे, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी अनुपलक्षित थी । उनमें उत्तम पुरुष के बत्तीस लक्षण पूर्णतया विद्यमान थे। उनके वक्षस्थल-सीने स्वर्ण-शिला के तल के समान उज्ज्वल, प्रशस्त, समतल, 卐 फ माँसल, चौड़े, विशाल थे । उन पर श्रीवत्स - स्वस्तिक के चिह्न अंकित थे। उनकी भुजाएँ गाड़ी के जुए, 5 यज्ञस्तम्भ - यज्ञीय खूँटे की तरह गोल, लम्बे, सुदृढ़, देखने में आनन्दप्रद, सुपुष्ट कलाइयों से युक्त, 5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र फ्र फ्र Jain Education International फफफफफफ (48) For Private & Personal Use Only Jambudveep Prajnapti Sutra 5 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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